चार भारतीय क्रांतिकारियों ने नेस्तनाबूत कर दी थी अंग्रेजों की निर्विवाद दुनियावी साख
झांसी 19 नवंबर। आज यानि 19 नवंबर वह तारीख है जो हर हिंदुस्तानी के लिए बेहद महत्वपूर्ण है आज ही के दिन देश की आजादी के लिए कोई भी कीमत चुकाने को तैयार क्रांतिकारियों अशफ़ाक उल्लाह खां, प़ं राम प्रसाद बिस्मिल और ठाकुर रोशन सिंह को दुनियाभर में अपनी किरकिरी से तमतमायी ब्रिटिश हुकूमत ने फांसी की सजा दी थी। एक तरह से यह हमारे लिए एक दुखद दिन भी है लेकिन शहीदों के बलिदान दिवस पर शोक मनाना ,उनके बलिदान का अपमान होता है।
तो आज इन शूरवीरों के बलिदान दिवस पर हम उस दर्द और उस टीस की बात करेंगे जो तत्कालीन अंग्रेज सरकार को इन्होंने दी थी और जिसके कारण अंग्रेज बिल्कुल बौखला और तमतमा गये थे। संभवत: उस समय तो उनके लिए यह यकीन कर पाना भी मुश्किल रहा होगा कि दुनिया भर में जो अनेकों मुल्कों के सरपरस्त हैं उनके खजाने पर एक गरीब और बदहाल भारत देश के कुछ सामान्य से कद काठी वाले लोगों ने हाथ डालने का साहस कैसे किया।
जी हां हम बात कर रहे हैं “ काकोरी कांड ” की। यह घटना गोरी सरकार के मुंह पर भारतीय क्रांतिकारियों को वह जोरदार तमाचा थी कि जिसका दर्द सालों साल तक उन्हें याद रहा।
अंग्रेजी सरकार के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह चलाने के उद्देश्य से क्रांतिकारियों ने काकोरी में सरकारी खजाना ले जा रही ट्रेन को लूटने की योजना बनायी थी और 09 अगस्त 1925 में इस घटना को अंजाम भी दे दिया । क्रांतिकारियों ने निपटने में पहले से ही हलकान अंग्रेजों के लिए यह लूटकांड किसी बड़े जबरदस्त झटके से कम नहीं था। इसके बाद बौखलायी ब्रिटिश सरकार ने मामले की जांच शुरू की और गिरफ्तारियां की गयी । इस बीच काकोरी कांड को अंजाम देने वाले यह चारों महत्वपूर्ण क्रांतिकारी भी दबोच लिए गये। इन पर मुकदमा चलाया गया और फांसी की सजा सुनायी गयी।
क्रांतिकारियों की गिरफ्तारी को लेकर जनता में विद्रोह बढ़ता जा रहा था। क्रांतिकारियों की फांसी के कारण विद्रोह सड़क पर न उतर आये इस डर से दुनिया की सबसे शक्तिशाली सरकार ने राजेंद्र लाहिड़ी को अदालत द्वारा मुकर्रर की गयी फांसी की तारीख 19 दिसंबर से दो दिन पहले ही 17 दिसंबर को गोंडा जेल में फांसी दे दी।
बाकी तीनों अशफाक उल्लाह खां, प़ं राम प्रसाद बिस्मिल और ठाकुर रोशनसिंह को 19 दिसंबर को लेकिन अलग अलग जेलों क्रमश:गोरखपुर जेल, फैजाबाद जेल और इलाहाबाद जेल में फांसी दी गयी। केवल यहीं नहीं इनके साथ 6 अन्य क्रांतिकारियों को न्यूनतम 4 वर्ष कारावास से लेकर अधिकतम ‘काला पानी’ अर्थात आजीवन कारावास तक की सजा दी गई थी।इस तरह इन दस क्रांतिकारियों ने अंग्रेज हुकूमत के सरकारी खजाने को लूटने की हिम्मत दिखाकर उन्हें ऐसी जबरदस्त चोट दी कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उनकी साख को बड़ा धक्का लगा।
आज का दिन हर हिंदुस्तानी के लिए बेहद गर्व का है जब हमारे शूरवीरों ने एक सर्वोच्च लक्ष्य “आजादी” के रास्ते पर चलते हुए एक व्यक्ति के सबसे बड़े धन अर्थात उसके जीवन का ही हंसते हंसते बलिदान कर दिया था। हम ऐसे बलिदानियों को आज नमन करते हैं और श्रद्धांजलि देतेे हैं।
वैभव सिंह