भारतीय लोकतंत्र

किस ओर जा रहा है भारतीय लोकतंत्र

नयी दिल्ली 08 जुलाई।  हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव 2024 में दो नवनिर्वाचित सांसदों के रूप में जिनके नाम सामने आये ,उसने देश की पूरी लोकतांत्रिक व्यवस्था पर सवाल खड़े किये बल्कि आमजन के बीच भी इस व्यवस्था को लेकर विश्वास को कहीं न कहीं कम करने का काम किया है। देशविरोधी काम करने वाले लोगों का सांसद के रूप में सामने आना और फिर सांसद के रूप में शपथग्रहण भी कर लेना यह सवाल उठाता है कि आखिर भारतीय लोकतंत्र किस ओर जा रहा है।

पंजाब की खडूर साहिब सीट से अमृतपाल सिंह और कश्मीर की बारामूला सीट से इंजीनियर राशिद ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव जीता। राशिद  गैरकानूनी गतिविधिया  (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत आतंकवादी गतिविधियों के लिए पैसा मुहैया कराने के मामले में दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद है जबकि अमृतपाल आर्म्स एक्ट और राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (एनएसए) के तहत अपराधों में असम की डिब्रूगढ जेल में बदं है।

इन दोनों ने जन प्रतिनिधि अधिनियम 1951 की धारा 08 के तहत जेल में बंद कैदियों को चुनाव लड़ने के लिए किये गये प्रावधानों के तहत चुनाव लड़ा। इस अधिनियम के तहत जेल में बंद व्यक्ति दोष सिद्ध होने तक चुनाव लड़ सकता है।इन्हीं प्रावधानों का लाभ लेकर कोई साधारण नहीं बल्कि खुले आम देश विरोधी ,संविधान विरोधी, सरकार विरोधी बातें करने वाले यह दोनों व्यक्ति चुनाव लड पाये और अपने लोगों की मदद से चुनाव प्रचार कर जीत भी हासिल कर ली।

यह स्थिति देश की कानून और न्याय व्यवस्था पर भी सवाल उठाती है कि देश विरोधी अति गंभीर अपराधों के आरोपियों के मामलों को फास्ट ट्रैक कोर्ट या अन्य किसी प्रावधान के तहत तुरंत  सुनवायी कर स्थिति स्पष्ट क्यों नहीं की गयी।

ऐसे लोगों का राजनीतिक व्यवस्था में आगे बढ़ना न्याय व्यवस्था की लचर कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठाता है कि आखिर क्यों ऐसे मामलों में सुनवायी तेजी से नहीं की जाती है।

जब ऐसा नहीं हो पाता है तो देश विरोधी काम करने वाले भी आरोपी से दोषी साबित होने के बीच का सफर न केवल आसानी से पार कर लेते हैं बल्कि इसी बीच चुनाव लडकर, जीतकर शपथ भी ग्रहण कर लेते हैं।

ऐसे लोगों को संसद के गलियारों की ओर विश्वास से कदम बढ़ाते देख देश की जनता खुद को ठगा से महसूस करती है। लोगों को समझ ही नहीं आता कि देश के खिलाफ सार्वजनिक रूप से विषवमन  करने वाले ऐसे लोग न केवल चुनाव जीतते हैं बल्कि संविधान के तहत शपथ ग्रहण भी कर लेते हैं।इस तरह की स्थिति से लोगों के बीच देश के लोकतंत्र को लेकर विश्वास पर कुठाराघात होता है।

यह  स्थिति देश में न्यायपालिका की कार्यप्रणाली पर न केवल सवाल उठाती है बल्कि उस लोकतंत्र में लोगों के भरोसे को बनाये रखने के लिए न्यायपालिका के तहत बदलावों की जरूरत को भी रेखांकित करती है। ऐसा होने से कार्यपालिका में प्रवेश को उत्सुक देश विरोधी ताकतों को न्यायपालिका के माध्यम से रोकना आसान हो पायेगा और  विधायिका, कार्यपालिका तथा न्यायपालिका के मजबूत आधारों पर खड़ी देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था को भी मजबूती मिलेगी।

टीम वैभव सिंह

बुंदेलखंड कनेक्शन

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