महिलाओं के खिलाफ अपराध

कब मिलेगी महिलाओं के खिलाफ अपराधों से आजादी ?

नयी दिल्ली 25 अगस्त । दुनिया में महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराधों से सभी अवगत है । देश में लगातार बलात्कार के मामले सामने आ रहे है जिसके कारण पूरे देश में महिला सुरक्षा पर आक्रोश देखा जा रहा है ।
कोलकाता के आर जी कर मेडिकल कॉलेज में हुए 31 साल की रेजिडेंट डॉक्टर के रेप केस ने सबको 2012 में हुए निर्भया रेप केस की यादें ताजा करदी है , जिसके खिलाफ पूरा देश आज एक साथ खड़ा है । कोलकाता रेप केस ने महिलाओं के कार्य स्थल पर सुरक्षा पर सवाल उठाया है । केस की जांच सीबीआई को सौंप दी गई है । जिसमें आर जी कर कॉलेज के प्रीसिपल संदीप घोष शक के घेरे में घिरते नजर आ रहे है ।
महिलाओं के खिलाफ अपराध
इन सब घटनाओं से एक बात साफ होती है कि इस देश में चाहे सरकार बदलती रहे या नीतियां बनती रहे लेकिन महिलाओं ने खुद को ना कल सुरक्षित महसूस किया था ना आज करती हैं । बलात्कार की केसेस भी ऐसे की सुनने वाले की रुह कांप जाए की आखिरी वक्त में उस पीड़िता ने किन हैवानो का सामना किया होगा ।
एनसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार 2022 में प्रतिदिन 90 रेप केस रजिस्टर किए गये थे । जबकि वास्तविक आंकड़े बहुत अधिक होने की संभावना है । महिलाएं और उनके परिवार कभी समाज में नाम खराब होने के डर से तो कभी बलात्कारी की धमकियों के डर से पीछे हट जाते हैं ।
एनसीडब्ल्यू 2023 के आंकड़ों की माने तो पिछले साल देश भर में महिलाओं के खिलाफ 28,811 अपराध की शिकायते दर्ज की गई थी जिनमें ज्यादातर मामले घरेलू हिंसा के अलावा अन्य उत्पीड़न के थे । देशभर के इन मामलों में से करीब 55% मामले सिर्फ उत्तर प्रदेश के थे हालांकि उत्तर प्रदेश देश का सबसे ज्यादा आबादी वाला राज्य भी है।
कोलकाता से शुरू हुआ यह प्रदर्शन अब देश के कई राज्यों में देखा जा रहा है । सोशल मीडिया पर भी महिलाओं के खिलाफ अपराधों को लेकर जनता काफी सक्रिय नजर आ रही है । इन सब के बावजूद लगातार हर रोज रेप केस सामने आ रहे हैं चाहे वह 3 साल के बच्चे का हो या 85 साल की बुजुर्ग महिला का । सवाल है कि क्या आरोपियों के खिलाफ कड़े कानून बनाने से महिलाओं के खिलाफ अपराध रुकेंगे ? जहां निर्भया केस में पीड़िता को इंसाफ मिलने में 7 साल 3 महीने लग गए । अजमेर केस में 100 से ज्यादा स्कूली बच्चियों को इंसाफ मिलने में 32 साल लग गए ..और आज भी न जाने कितने मामलो का फैसला ही नही हुआ । क्या ऐसे देश में सख्त कानून से अपराधों को रोका जा सकता है ?
निर्भया केस के बाद कानून में कई बदलाव किए गए जिसमें से एक है कि यदि बलात्कार के कारण पीड़िता की मृत्यु हो जाती है या वह बेहोश हो जाती है तो बलात्कार के लिए कम से कम 20 साल की कैद या आजीवन कारावास या मौत की सजा दी जाती है । इन सब के बावजूद न अपराध रुके , ना महिलाओं ने सुरक्षित महसूस किया और नहीं अपराधियों की मानसिकता में सुधार आया । अगर जरूरत है तो न सिर्फ कड़े कानून व्यवस्था की बल्कि न्याय प्रक्रिया को तेज करने की और समाज में सुधार लाने की क्योंकि न सिर्फ पुरुष बल्कि कई महिलाएं भी यह मानते हैं कि बलात्कार का कारण पीड़िता के कपड़े और आचरण भी होता है ऐसे समाज में कानून कितने भी सख्त हो अपराध नहीं रुकते बल्कि अपराधिक मानसिकता वाले व्यक्ति को बढ़ावा मिलता है ।
क्यों देश की सरकार और नागरिकों को हर बार एक बड़ी घटना चाहिए होती है ,अपनी ध्वस्त होती व्यवस्थाओं के बारे में जागरूक होने के लिए । यह एक पैटर्न देखने मिलता है, कि एक आत्मा झंझोड़ने वाला हादसा होगा फिर आम जनता उसके विरोध में प्रदर्शन करेगी और फिर सरकार उसके खिलाफ सख्त कदम उठाएगी ।

आकृति, वैभव सिंह

बुंदेलखंड कनेक्शन

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