झांसी। “पानी” एक ऐसा तत्व जो मानव जीवन का आधार है जिसको लेकर किसी भी प्रकार की चर्चा दुनियाभर में फैले हर इंसान के अपने अस्तित्व की चर्चा है ।
प्रकृति मां की ओर से मानव प्रजाति को मिले इस अमूल्य तत्व के महत्च को लेकर इंसानों के बीच हद दर्जे की असंवेदनशीलता के कारण ऐसी स्थिति पैदा हो गयी है कि विश्व जल दिवस जैसे विशेष दिवसों का आयोजन दुनिया भर में इंसानों को इस जीवनदायी तत्व की महत्ता को समझाने और जल संरक्षण के लिए 1993 से संयुक्त राष्ट्र ने शुरू किया।
इस साल विश्व जल दिवस की थीम “ ग्लेशियर संरक्षण” रख गया है।यूं तो धरती पर 71 प्रतिशत जल है लेकिन इसमें से केवल 2़5 प्रतिशत जल ही पीने योग्य है। इस पीने योग्य जल का सबसे बड़ा हिस्सा ग्लेशियर और बर्फीले क्षेत्रों मे 68.70 है और इसके बाद भूजल 30.10% , झीलें और नदियां 0.30% और वायुमंडलीय जल मात्र 0.04% है।
यह आंकडे अपने आप में यह बताने को पर्याप्त है कि यह संसाधन जो मानव जीवन का आधार है इसको लेकर इंसानों के बीच कितनी संवेदनशीलता की दरकार है लेकिन आज स्थिति इसके एकदम उलट है और आम नागरिक विशेषकर देश में लोगों के बीच जल संरक्षण ,इसमें प्रदूषण को रोकने जैसे मुद्दों को लेकर बहुत अगंभीरता है ।
देश में हमें यह समझने की जरूरत है कि जल, सरकार का नहीं आमजन का मुद्दा है इसको लेकर हम सरकार पर उस तरह की जिम्मेदारी नहीं डाल सकते जैसी किसी अन्य मुद्दे को लेकर क्योंकि यहां सवाल जल को बचाने या सहेजने का नहीं बल्कि हमारे खुद के अस्तित्व को बचाने और अपनी आने वाली पीढ़ियों को अस्तित्व देने का है। आखिर जिस जल के न होने पर या कम होने पर इंसानों के बीच किस दर्जे की हिंसा फैलेगी यह कोई छिपी नहीं है।
देश में सरकार जल संरक्षण को लेकर नीतियां बना सकती है लेकिन उन नीतियों का प्रभावी क्रियान्वयन हो इसको लेकर सवाल तो जनता को ही उठाना होगा। इसके लिए सरकार जो व्यवस्था करें उसे व्यवस्था को बनाये रखना, कमी होने पर संवेदनशीलता के साथ सामुदायिक भावना के साथ मिलकर उसका समाधान करना आमजन की जिम्मेदारी है।
साथ ही जल संरक्षण को लेकर या जल प्रदूषण को लेकर सरकार जो नियम बनाये उसको लेकर व्यापारी और व्यवसायी वर्ग में भी जिम्मेदारी होना अपरिहार्य है क्योंकि फिर सवाल हमारे खुद के अस्तित्व का है। मनुष्य चाहे घर में है, सड़क
पर है, कार्यस्थल पर है , महिला या पुरूष है या बच्चा है , उसे अपनी जिम्मेदारी उठानी होगी।
धरती पर जितनी भी प्रजातियां पायी जाती हैं उनमें मानव प्रजाति सर्वश्रेष्ठ है इसलिए उसकी जिम्मेदारी भी सर्वाधिक है । इस पर यह जानना भी बेहद जरूरी है कि आज धरती पर जल का जो भीषण संकट पैदा हुआ है उसके लिए धरती की कोई भी अन्य प्रजाति दोषी नहीं है केवल मानव प्रजाति को छोड़कर।
हमने अपने लालच में प्रकृतिप्रदत्त हर संसाधन को ऐसा अंधा दोहन किया है जिसके कारण पूरे ब्रह्मांड में मानववास योग्य एकमात्र ग्रह ” पृथ्वी” को भी हमने अपने लालच की बलि वेदी पर चढ़ा दिया है और अब दुनियाभर के अमीर इंसान दूसरे ग्रहों पर जाकर बसने के सब्जबाग आम लोगों को दिखा रहे हैं।
दुनिया भर के चंद पैसे वाले लोगों ने विश्वभर के आम लोगों को “ भोगवादी संस्कृति” में आकंठ डुबा दिया है और इसी का नतीजा है धरती पर पैदा हुआ भयंकर जल संकट और आज यही बड़े लोग तीसरा विश्वयुद्ध पानी को लेकर होने जैसे जुमलों को उछाल रहे हैं ।
इस सबके बीच आम आदमी लगातार और भोगने की दौड़ में यह सोचने विचारने की ताकत ही खो चुका है कि जो भेंटें प्रकृति मां ने इंसान को इस ग्रह पर रहने के लिए यूं ही आर्शीवाद रूप में दीं थीं, उसके साथ केवल मानव प्रजाति ने ऐसा संबंध बनाया कि धरती की बाकी प्रजातियों के जीवन को भी संकट में डाल दिया। जिनका इस जल संकट को पैदा करने में कोई दोष ही नहीं है लेकिन इसका सर्वाधिक और सबसे पहले असर उन्हीं प्रजातियों पर पड़ने वाला है और पड़ रहा है।
अपने अस्तित्व पर प्रश्नचिंह लगाने वाला संकट हमने पैदा किया है और इसीलिए हम में से हर एक को अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी। न सवाल धरती को बचाने का है न किसी प्रजाति को बचाने का, बात खुद को बचाने की है ।
यह संभव तब तक नहीं होगा जब तक हर एक इंसान अपनी जिम्मेदारी न उठाये और ऐसा भी नहीं है कि स्थिति को संभाला नहीं जा सकता। आज से ही अगर हर इंसान पानी को लेकर अपनी जिम्मेदारियों पर आपाधापी भरी जिंदगी के बीच थोड़ा रूक कर विचार कर ले तो सब संभव है। मिलकर हम ही अपने अस्तित्व को, अपने एकमात्र घर धरती पर जीवन को बचा सकते हैं।
टीम वैभव सिंह
बुंदेलखंड कनेक्शन