नयी दिल्ली 13 जून । इंसान की जिज्ञासा को तार्किक आधार पर शांत करने और ज्ञात संसार की हर अबूझ पहेली को सुलझाने में समर्पित “ विज्ञान ” ने आज इंसान को “ आर्टीफिशियल इंटेलीजेंस” (एआई) यानी कृत्रिम बुद्धि के रूप में अब तक की आधुनिकतम तकनीक मुहैया करा दी है।
सच कहें तो इसको तकनीक नहीं बल्कि एक ऐसी आधुनिकतम सुविधा के रूप में देखा जा रहा है कि जिसकी मदद से इंसान बिना दिमाग या हाथ पैर हिलाएं अपने सारे काम जबरदस्त सटीकता के साथ कर सकता है। एआई बनाकर इंसान ने अपने ही तरह सोच समझने लायक मशीन तैयार कर ली है। इस तकनीक का जो रूप आज सामने आया है उस पर खोज और काम 1950 से ही जारी था और सबसे पहले अमेरिका के एक जाने माने कंप्यूटर वैज्ञानिक जॉन मैककर्थी ने इस संकल्पना को जन्म दिया था, उन्हें इस तकनीक का जनक माना जाता है। इसके बाद से इस पर लगातार शोध हुए और समय समय पर विभिन्न् कंपनियों ने इसके सरल रूपों का इस्तेमाल शुरू किया।
असल में इंसानी जीवन को अधिक से अधिक सुविधापूर्ण बनाने की ललक ही ” एआई ” तकनीक के जन्म का आधार है। इंसान ने लगातार बढ़ते विज्ञान की मदद से जो चाहा वो पा लिया और आज एआई शानदार तरीके से इंसानी जीवन में दखलअंदाजी कर रही है। एलेक्जा से कौन वाकिफ नहीं है लेकिन ठहरिये आज वरदान नजर आ रही तकनीक ने वह खतरे भी सामने लाने शुरू कर दिये हैं जिससे धरती पर इंसानों की जगह मशीनों का राज होने की स्थिति बनने का खतरा मंडराने लगा है और अब इस तकनीक के पैरोकार भी इसके इस्तेमाल के लिए कड़े नियम बनाने की जरूरत पर बल देने लगे हैं।
मीडिया रिपोर्टस के अनुसार अमेरिका की वायुसेना के एक सिमुलेशन (लैब टेस्टिंग) के दौरान एक एआई ड्रोन ने ऑपरेटर को मार गिराया। अमेरिकी वायुसेना के एआईटेस्ट और ऑपरेशंस के प्रमुख कर्नल टकर हैमिलटन ने मीडिया को इस बारे मे जानकारी दी।टेस्टिंग के दौरान एआई ड्रोन को मार्ग की बाधा को खत्म करने के लिए प्रोग्राम्ड किया गया था लेकिन जब इसके ऑपरेटर ने ड्रोन को निर्धारित प्रोग्राम से कुछ अलग तरह के निर्देश दिये तो उसने ऑपरेटर को ही उद्देश्य हासिल करने में एक बाधा मानकर मार गिराया।
पूरे घटनाक्रम के दौरान एआई ड्रोन को लगातार ऐसा करने से रोका गया, उसे निर्देश भी दिये गये लेकिन उसने अपने कृत्रिम बुद्धि का इस्तेमाल कर वह काम कर दिया जो प्रोग्राम में था ही नहीं ।एआई ड्रोन ने उसे चला रहे ऑपरेटर को ही मार दिया।
इस घटना से साबित कर दिया है कि एआई मनुष्य के हाथ में आयी वह तकनीक है जो कभी भी भस्मासुर का रूप ले सकती है । यह तकनीक अब इंसानों के ही विनाश का कारण बन सकती है । इंसान की तरह सोचने वाली और प्रतिक्रिया देने वाली कोई भी मशीन अपने निर्धारित प्रोग्राम से किस तरह से कुछ नया सीख लेगी इससे इंसान अभी अंजान है । नयी सीख के बाद एआई क्या कर सकता है यह अमेरिकी वायुसेना के सिमुलेशन प्रोग्राम से साफ हो गया है। ऐसी मशीनें बनाने वाले यानी इंसान को ही खत्म कर सकतीं हैं।
तो कहिए जीवन को ज्यादा से ज्यादा सुखद ,सरल और सीधे सीधे शब्दों मे कहें की मनुष्य के आलस्य ने उसे अपने ही विनाश के मुख पर लाकर खड़ा कर दिया है। उसी ने यह तकनीक तैयार कर न केवल एक दो मनुष्य बल्कि पूरी मानवजाति को खत्म करने की तकनीक बना दी है।
एआई के आने के बाद हॉलीवुड की वह तमाम फिल्में जिनमें मशीनों को इंसानों को खत्म करते दिखाया गया है वह कोरी कल्पना नहीं बल्कि सच साबित हो गयीं हैं। कुछ समय पहले की यह फिल्मी कल्पना आज के इंसान के सामने खुद उसके ही अस्तित्व के लिए एक बड़े खतरे के रूप में उभरी है। इसी कारण आम आदमी ही नहीं दुनियाभर के बड़े बड़े विशेषज्ञ इसके खतरे से डरे हुए हैं1
एल्फाबेट के सीईओ सुंदर पिचई ने कहा है कि एआई के इस्तेमाल के लिए नियम होना बेहद जरूरी है,कंपनियों को इसके इस्तेमाल की खुली छूट नहीं दी जा सकती है। इस समय के सबसे बड़े वैज्ञानिकों में से एक स्टीफन हॉकिंस ने कहा है कि एआई की सफलता और खतरा बन सकती है। हम तैयार नहीं हुए तो यह सभ्यता की सबसे भयावह घटना बन सकती है, स्पेसएक्स के संस्थापक एलन मस्क ने कहा अगर मुझसे हमारे अस्तित्व पर मंडरा रहे सबसे बड़े खतरे का अनुमान लगाने का कहा जाएं तो वह एआई हो सकती है।
एआई के गॉड फादर माने जाने वाले जेफ्री हिंटन ने मीडिया को दिये साक्षात्कार में कहा है कि मुझे अफसोस है कि जिस तकनीक पर मैंने बरसों काम किया वह आने वाले समय मे दुनिया के लिए एक बड़ा खतरा होने वाला है।आने वाले समय में एआई इंसानी समझदारी को मात दे सकती है।
विशेषज्ञों की ऐसी राय खतरे की भीषणता को समझने की लिए काफी है इसलिए ज़रूरी है कि सरकारें इसके इस्तेमाल को लेकर कड़े नियम बनाये।