rachna tripathi

12 साल की उम्र से बनी आवारा कुत्तों की मददगार रचना त्रिपाठी

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झांसी ! करूणा और प्रेम प्रकृति की ओर से हर जीव को दिया गया वह उपहार है कि जिसकी कोई भाषा नहीं होती लेकिन अगर किसी की वेदना देख यह भाव मानव मन में जागृत हो जाएं तो वह अपना पूरा जीवन ही उनकी सेवा में समर्पित कर सकता है। ऐसा ही हुआ है उत्तर प्रदेश की वीरांगना नगरी झांसी की रचना त्रिपाठी के साथ।
रचना ने खास बातचीत में अपने जीवन के उन पलों की यादें सांझा की जब गली के आवारा कुत्तों की पीड़ा ने उन्हें इतना व्यथित कर दिया कि वह जहां कहीं भी रहतीं वहां ऐसे कुत्तों की सेवा और संरक्षण का काम ही उनके जीवन का उद्देश्य बन गया। रचना ने बताया कि पशुओं से प्रेम उन्हें अपने पिता से विरासत में मिला और वह बचपन से ही पशुओं के बीच बहुत सहज महसूस करतीं थीं । जब वह 12 साल की थी तो एक कुत्ते का बच्चा गोद लेने गयी लेकिन लौटते हुए एक गली के कुत्ते के दो मासूम बच्चों को यूं ही सड़क पर देख उनके मन में उन छोटे बच्चों के प्रति जबरदस्त करूणा और प्रेम का भाव उमडा। भावनाओं का यह आवेग इतना जबरदस्त था कि वह उन दो कुत्ते के बच्चों को भी अपने साथ घर ले आयीं। इस तरह उन्होंने 12 साल की उम्र में पहली बार इन तीन कुत्तों को गोद लिया था। बस यहीं से रचना में आवारा कुत्तों की सेवा और उनका संरक्षण किये जाने की आवश्यकता का भाव जबरदस्त रूप से मज़बूत होता चला गया ।
आज हालात यह है कि उनके घर में 35 ऐसे कुत्तों को आश्रय और सुरक्षा मिली हुई है, जिनका कोई सहारा नहीं था। रचना अपने घर में पलने वाले इन कुत्तों को “ फरी फ्रेंड्स” (फर वाले साथी) बुलाती हैं। रचना के इन फरी फ्रेंड्स में से कुछ वह भी हैं जिन्हें रचना दिल्ली में नौकरी करते हुए अपने साथ घर ले आयीं थी। कोरोना काल में रचना के झांसी लौटने पर ये सभी झांसी आ गये और इसके बाद सभी का आश्रय झांसी में रचना का घर ही बन गया। कोरोना काल के बाद रचना घर से ही काम करती हैं और उनकी आय का एक बड़ा हिस्सा इन कुत्तों की देखभाल, भोजन-पानी , दवा और टीकाकरण आदि में जाता है। उनके साथ साथ उनके पिता की पेंशन और भाई की कमाई का एक बड़ा हिस्सा भी इन कुत्तों की सेवा सुश्रषा पर ही खर्च होता है।
रचना का कहना है कि उनके परिजनों ने उनके इस काम में बहुत सहयोग किया है इसी कारण वह यह काम कर पा रहीं हैं। रचना ने उनके इस काम को करने में दिये गये सहयोग के लिए अपने पड़ोसियों का भी धन्यवाद दिया। उन्होंने बताया कि शुरूआत में तो इतने ज्यादा कुत्तों के कारण उनके पड़ोसियों को काफी परेशानी हुई लेकिन बाद में समझा-बुझा कर स्थिति को सामान्य किया गया और आज उनके सहयोग के कारण ही वह इतने कुत्तों की मदद कर पा रहीं हैं। रचना ने बताया कि वह अपने फरी फ्रेंड्स के साथ बहुत खुश हैं। इनकी देखभाल में वह इतना व्यस्त रहतीं हैं कि शादी का ख्याल ही उन्हें नहीं आया। उनके अपने बच्चे नहीं है उनके यह फरी फ्रेंडस ही उनके बच्चे हैं। उनका जीवन इन्हीं के लिए पूरी तरह से समर्पित है।

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