झांसी 16 अक्टूबर। देश के पहले स्वतंत्रता संग्राम में वीरता और शौर्य की अद्वितीय मिसाल कायम करने वाली महारानी लक्ष्मीबाई की जयंती के अवसर पर प्रधानमंत्री सहित अन्य प्रमुख मंत्रियों के झांसी आगमन को लेकर हो रही धूम के बीच रानी और उनके मददगारों के वंशजों की पीड़ा कहीं गुम होकर रह गयी है। न केवल रानी बल्कि अंग्रेजों के साथ उनके संघर्ष में रानी के मददगारों के वंशज आज अपने ही घर में गुमनामी के अंधेरे में हैं।

- रानी के अदम्य साहस को वंदन करने के लिए आयोजित किये जा रहे इस भव्य कार्यक्रम के आयोजकों का इस ओर कोई ध्यान नहीं कि उस वीर परंपरा के वाहक अपने ही गृहनगर में अंजानों की तरह जीवन यापन करने को मजबूर हैं। लक्ष्मीबाई या उनके वीर मददगारों के नाम पर अपनी राजनीति चमकाने वाले और सामाजिक पद प्रतिष्ठा बढ़ाने की कामना रखने वाले ऐसे लोगों को यह जानने में कोई रूचि नहीं कि उनके वंशज कहां हैं कैसे हालातों में जीवन यापन कर रहे हैं। यहां तक कि कुछ उदाहरण तो ऐसे हैं कि जो सब कुछ जानते हुए भी पूरी तरह से अंजान बने रहते हैं।
- महारानी लक्ष्मीबाई के पिता मोरेपंत तांबे के भाई राजाराम तांबे की वंशज विश्राम तांबे यहां गणेश मंदिर में पुजारी हैं। गणेश मंदिर वह मंदिर है जिसमे रानी का विवाह हुआ था। यहां “ सीमांत पूजन” की रस्म तो निभायी ही गयी थी साथ ही कोठी कुंआ मे उनका विवाह भी संपन्न कराया गया था। इसी मंदिर में रानी के पिता के वंशज आज भी मौजूद है। मराठी समाज के लोग और अन्य स्थानीय लोग इस बात के जानकार हैं लेकिन जानकर भी सब अंजान बने रहते हैं ।
रानी के मुख्य तोपची गुलाम गौस खां के वंशज यहीं आवास विकास कालोनी में रहते हैं। रानी के अंगरक्षक कासिम खां और गुलमुहम्मद के वंशज भी झांसी में हैं । रानी के सिपह सालार अर्थात मुख्य सेनापति जवाहर सिंह परमार जिन्होंने रानी के साथ नत्थे खां से लड़ाई लड़ी थी ,उनके वंशज वीरसिंह परमार रक्सा में रहते हैं। जवाहर सिंह का काफी समान जो उनके परिजनों के पास था जैसे शस्त्र, जिरह बख्तरबंदआदि वह सब कुछ झांसी संग्रहालय को दान किया था।
महारानी के मुख्य अंगरक्षक गुल मुहम्मद की चौथी पीढ़ी के वसीम खां, जो युवा पुरातत्ववेत्ता भी हैं ने बताया कि महारानी के पिता और उनके मुख्य मददगारों के वंशज झांसी में ही हैं लेकिन रानी के सम्मान में होने वाले आयोजनों में किसी समाजसेवी या नेता को उनकी याद नहीं आती। किसी आयोजन में इन महान विभूतियों के परिवार से जुड़े लोग स्वंय तो आगे नहीं आयेंगे। जो लोग जानकार हैं वह अपने अपने हितों के चलते जानबूझकर अंजान बनते हैं और इसी मानसिकता के भार में रानी और उनके मददगारों के वंशज दबे हुए हैं। इस बार के आयोजन में भी ऐसा ही है। इस भव्य आयोजन जिन लोगों के शौर्य और बलिदान की याद में हो रहा है उनके वंशजों का यूं अपने ही घर में गुमनामी के अंधेरे में खो जाना कई सवाल खड़े करता है।