
पूर्व कुलपति प्रो. सुरेंद्र दुबे ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति का फार्मूला हिन्दी के प्रतिकूल है ऐसे में हमारी जिम्मेदारी महत्वपूर्ण हैं। हिन्दी वाले लोगों को पूर्वोत्तर और दक्षिण की भाषाएं सीखनी होंगी।


प्रो. शिशिर पांड ने कहा कि क्षेत्रीय और जनपद के लेखकों के लेखन कम महत्वपूर्ण नहीं हैं भले ही वह प्रकाशित नहीं हुए हैं। 1900 के करीब पत्र-पत्रिकाओं की बाढ़ आई और उनमें से कई का वर्तमान में शताब्दी वर्ष चल रहा है। प्रो. कृष्ण कुमार सिंह ने कहा कि अंग्रेजी के सामने हिन्दी पाठ्यक्रम के सामने कई चुनौतियां थी। मान्यता नहीं मिलती थी। साथ ही दक्षिण की भाषाओं से हमारा संबंध मजबूत होना चाहिए। प्रो. चक्रधर त्रिपाठी ने भी अपने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम के अंत में अतिथियों ने शोधार्थियों और शिक्षकों के सवालों के जवाब दिए।


कार्यक्रम में बुन्देलखण्ड और सिद्धार्थ विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. सुरेन्द्र दुबे, महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा के कुलपति प्रो. कृष्ण कुमार सिंह, जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय, चित्रकूट के प्रो. शिशिर पांडे, ओडिशा केंद्रीय विश्वविद्यालय के प्रो. चक्रधर त्रिपाठी, भारतीय हिन्दी परिषद के सभापति प्रो. पवन अग्रवाल, बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय, झांसी के हिन्दी विभाग अध्यक्ष व अधिवेशन के संयोजक प्रो. मुन्ना तिवारी प्रमुख रूप से उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन भारतीय हिन्दी परिषद, प्रयागराज के प्रधानमंत्री प्रो. योगेन्द्र प्रताप सिंह ने किया।
इससे पूर्व विश्वविद्यालय के प्रशासनिक भवन में स्थित कुलपति कमेटी कार्यालय में देश विदेश के विभिन्न विश्वविद्यालयों के हिंदी विभाग के 22 अध्यक्षों ने हिस्सा लिया। बैठक में राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अनुसार पाठ्यक्रम में कौशल विकास से संबंधित कोर्स शामिल करने पर चर्चा की गई।
हिंदी विभाग में अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी के तीन समानांतर सत्रों में प्रो. हिमांशु सेन, प्रो. सुधीर कुमार सिंह, प्रो. मंजुला यादव, डॉ. आनंद प्रकाश गुप्ता, डॉ. ममता तिवारी, प्रो. नीलम राठी, प्रो. पठान रहीम खान, प्रो. माधुरी यादव, प्रो. पुनीत बिसारिया, डॉ. धर्मेंद्र प्रताप सिंह, प्रो. श्रुति, पंडित विष्णु कांत शुक्ला, प्रो. हरिकृष्ण तिवारी, प्रो. राजेश चंद्र पांडे, प्रो. ऊषा पाठक , प्रो. रचना विमल, प्रो. उमेश कुमार सिंह, डॉ. अरुण कुमार वर्मा, प्रो. सर्वेश कुमार सिंह,प्रो. अपर्णा, प्रो. सुनीता शर्मा आदि ने अपने शोध पत्र प्रस्तुत किए।
शाम को ओरछा के केशव भवन में भारतीय हिंदी परिषद की आम सभा आयोजित की गई। इस सभा में हिंदी के विकास के लिए ले गए सभी प्रस्तावों को सर्वसम्मति से पारित किया गया। देश भर के विद्वानों को ओरछा का भ्रमण कराया गया। सांस्कृतिक कार्यक्रम का भी आयोजन किया गया। बुंदेली राई और राम कथा के मंचन ने अतिथियों को आनंदित किया।