विश्व पर्यटन दिवस

नयी दिल्ली 27 सितंबर। आज यानि 27 सितंबर का दिन पूरी दुनिया में पर्यटन दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह दिवस है मानव की खोजी और जिज्ञासु प्रवृत्ति का सबसे बड़ा परिचायक। मानव प्रजाति की सत्य की खोज और जिज्ञासा ने ही दुनिया में यात्राओं का प्रारंभ किया और इसी खोज का वर्तमान और  आधुनिक प्रारूप आज पर्यटन के रूप में हमारे सामने है।
विश्व पर्यटन दिवस से जुड़ी तथ्यात्मक जानकारी से इतर आज का दिन यह विचार करने का है कि  इंसान की जानने की प्रवृत्ति का यह रूप जो वर्तमान पर्यटन के रूप में हमारे सामने हैं आखिर इसका हमारे जीवन में, आज के समय क्या औचित्य है? क्या आज का पर्यटन उस उद्देश्य के कहीं आस पास भी खड़ा है जिसको लेकर इंसान ने यात्राओं पर निकलने की शुरूआत की थी ?
प्राचीन काल में ऋषि मुनि सत्य की खोज में निकलते थे  और देश की ही बात करें तो उत्तर से दक्षिण और दक्षिण से उत्तर तक पहुंच जाते थे। रास्ते में हुए अनुभवों के बल पर वह प्रकृति को जानने और समझने के क्रम से गुजरते थे और पुस्तक के माध्यम से उन्होंने भावी पीढ़ियों के लिए संदेश दिये।भारत में संतों की लंबी यात्राओं के उल्लेख हैं कबीर जीवन भर घूमते रहे,नानक अपने यात्राओं के क्रम में देश की सीमाएं लांघकर अरब तक पहुंच गये ।
फाहियान और हवेनसांग जैसे विद्वान हिमालय और तिब्बत पार कर भारत तक आ गये।यह सभी उदाहरण इंसान की जानने -समझने की जिज्ञासा की  पराकाष्ठा के रूप में हमारे समक्ष हैं लेकिन आज इंसान की अंधी इच्छाओं को पूरा करने के नाम पर जिस तरह के पर्यटन को बढ़ावा दिया जा रहा है क्या उससे इंसान को कोई बौद्धिक लाभ हो रहा है या वर्तमान का पर्यटन उसे अपने मन और इच्छाओं का और गुलाम बना रहा है ?
आज हम एक  समय पर दो ऐसे विषयों को लेकर काम करते हैं जिसमें एक ओर हमने अपने आवास यानि पृथ्वी और उसके पर्यावरण के संरक्षण के लिए अति गंभीर बातें कहते हैं तो दूसरी ओर पर्यटन के नाम पर पेड़ों की कटाई, पहाड़ों की कटाई ,प्राकृतिक स्थानों पर प्लास्टिक के कचरे की अधिक से अधिक पहुंच सुनिश्चित करते हैं। हमें यह समझना होगा कि अपने मन को प्रसन्न करने के लिए प्रकृति का बेवजह दोहन हमें पयर्टन के मूल उद्देश्य के कहीं आस पास तो फटकने ही नहीं देगा साथ ही इसके नाम पर इंसान अपने निवास के अभी तक ज्ञात एकमात्र  स्थान “ पृथ्वी” के अस्तित्व पर ही प्रश्नचिंह लगा देगा।
पर्यटन दिवस एक मौका है इस गंभीर चिंतन का कि जो प्रकृति, इस ग्रह पर इंसान को अन्य प्राणियों के साथ बसने और उपभाेग की आजादी देती है उसी प्रकृति का अपनी अंधी इच्छाओं के पीछे घूमने फिरने , मौज मस्ती के नाम पर होने वाले पर्यटन के कारण कहीं हम जाने अंजाने  नाश तो नहीं कर रहे। अगर ऐसा है तो आज पर्यटन दिवस के अवसर पर इसके वर्तमान रूप में  शीघ्रातिशीघ्र बदलाव करने के लिए अपने अपने स्तर से प्रयास करना हर इंसान  का पहला कर्तव्य  है।
टीम,वैभव सिंह
बुंदेलखंड कनेक्श

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