झांसी 22 अप्रैल । आज न बात किसी जाति, न धर्म , न संप्रदाय और न ही किसी समुदाय की । आज बात करनी है एक ऐसे कि जो इस धरती पर सबसे बुद्धिमान की संज्ञा खुद को देता है और बुद्धिमानी, समझदारी, अक्लमंदी, होशियारी या कहिए चालाकी का लेवल कुछ ऐसा कि उसके सामने अच्छे अच्छे पानी मांगे । इतना ही नहीं कुदरत भी उस पर सबसे ज्यादा है मेहरबान ! ! ! कहिए कैसा है जिझासा का लेवल , जानना चाहते हैं कि आखिर कौन है ये महान ??? तो हम उसे नाम से जानते हैं “ इंसान ”।

चौंकिए मत हम इंसान ही तो हैं जरा सोच कर देखिए “हम नहीं तो कौन बे” । क्या है कोई और ऐसा, जो हम इंसानों से ज्यादा प्रकृति के तोहफों से नवाज़ा गया हो ??? क्या हम ही नहीं हैं अपने सौरमंडल में जीवन के सबसे बडे़ ज्ञात ग्रह “ धरती” के सबसे शक्तिशाली, प्रतिभावान और बुद्धिमान प्राणी??? इस धरा के बाकी प्राणियों की क्या बिसात है हमारे आगे , हम सब पर भारी हैं।
इतने ज्ञानी कि दिन रात हममे से जो वैज्ञानिक हैं लगातार हमारे जीवन को सुखमय बनाने के काम में लगे हैं, पूरा बाजार बाहें फैलाकर हमारे सामने खड़ा है और हमें वह सब कुछ देना चाहता है जो हमें चाहिए , अगर पैसा नहीं है तो लोन पर देने वाले खडे हैं और यह सब हो रहा है हमारे लिए, हमारे सुखों के लिए । हम बहुत सुखपसंद लोग है और हों भी क्यों न आखिर दुनिया के सबसे ज्यादा अधिकारसंपन्न लोग जो हैं लेकिन बस इसी समझदारी में खोट हो गयी ,इससे अंजान हैं।
अब आप लोग सोच रहे होंगे कि आज यह सब क्यों लिखा जा रहा है तो जवाब है, क्योंकि हम बहुत होशियार लोग हैं। घर बरबाद कर दिया तो क्या हमने अपने समझदारी से एक दिन भी निकाल लिया है अपने इस आशियाने की सुध लेने का और इसे नाम दिया है ” वर्ल्ड अर्थ डे” यानी की “ विश्व पृथ्वी दिवस” और यह मनाया जाता है 22 अप्रैल, आज ही ।
देखिये हमारी समझदारी कि धरती पर हमारे साथ अन्य प्राणियों के जीवन को सहारा देने वाले जंगलों, धरती की पूरी हरियाली, नदियों के साफ पानी, साफ हवा सब कुछ को तबाह कर हम आज एक दिन बड़े दंभ से कहते हैं कि क्या करें धरती के लिए मनाते तो हैं एक दिन । देते हैं उपदेश कि जंगल बचाओ, पेड़ लगाओ, नदियों को साफ करो। जैसे तैसे इस एक दिन के बीतने के बाद कल से फिर हम सभी वह सब कुछ बादस्तूर करने लग जायेंगे जिससे हमारा खूबसूरत आशियाना और बद से बदतर हालात में चला जाए।
आज यह बात करनी इसलिए जरूरी है क्योंकि अपनी बेमतलब लेकिन हमारी नजर में बेहद जरूरी भागदौड़ के बीच यूं ही सही लेकिन शायद हम यह सोच सकें कि हम क्या कर रहे हैं। ईश्वर ने जिस नेमत से हमें नवाजा था उसे बरबाद कर हम मंगल , चांद और न जाने किस किस ग्रह पर जीवन ढूंढने में लगे हैं। जिन ग्रहों पर जीवन की संभावना का हल्का से प्रमाण मिलने पर हम गर्व से सीना चौड़ाकर अपने बढ़ते वैज्ञानिक समर्थ और पैसे के दम पर हासिल की गयी क्षमताओं की मदद से अन्य ग्रहों पर जीवन की संभावना ढूंढ़ लेने का दम भरते हैं ,उस समय हम यह सोचते ही नहीं कि दूसरे ग्रहों पर आशियाना तलाशने वाले हम इंसानों ने आखिर अपने पुश्तैनी घर “धरती” के साथ क्या किया है???
एक घर, जो धरती के रूप में हमें न केवल रहने को मिला था बल्कि हमारे जरूरतों को पूरा करने का सारा साजोसामान उस पर उपलब्ध था ।अगर हम धरती की उम्र में बात करें तो करोड़ों अरबों वर्षों से हम उसका उपयोग कर रहे हैं फिर भी कम नहीं पड़ा लेकिन विकास के रास्ते पर तेजी से कदम बढ़ाते हम इंसानों की जरूरत कब भोग और लोभ की पराकाष्ठा में बदल गयी हमें पता हीं नहीं चला।
हम विकास के रास्ते पर कुछ इतना तेजी से दौड़े कि रास्ते में आने वाले हर चीज को बरबाद कर दिया। हम भूल गये कि यह पृथ्वी न केवल हमारे बल्कि बाकी प्राणियों का भी आशियाना थी । हमने लालच में अपना हिस्सा तो खाया उनका हिस्सा भी खा गये। धरती को कुछ ऐसा तबाह किया कि दूसरे प्राणियों की कई निर्दोष प्रजातियां ही लुप्त हो गयीं और जो बचीं भी रह गयीं हैं वह भी सिर्फ इसीलिए कि वह हमारे लालच की ज़द में नहीं आतीं।
सोचिए,, क्या हम इन हालातों को बदलने के लिए कुछ कर सकते हैं, यह कहकर मत बैठ जाना कि मुझ अकेले के करने से क्या होगा।घर हमारा है बरबादी हमने की तो अब ठीक भी हमें करना होगा। इन हालातों को हकीकत में बदलने के लिए जो कुछ भी कर सकते हैं करिए क्योंकि एक एक इंसान ने भी अगर अपने स्तर से अपने घर में चीजें संभालने की कोशिश शुरू की तो मानिए हम अपना घर ठीक कर लेंगे और फिर हमें यूं ही यहां वहां दूसरे आशियाने तलाशने की कोई दरकार नहीं रह जायेगी। न ही जरूरत रह जायेगी इस काम के लिए करोडों अरबों इकट्ठा करने की।
डेस्क
बुंदेलखंड कनेक्शन
