झांसी। बंगाल की खाड़ी से उठे चक्रवाती तूफान “ मोंथा” का असर उत्तर भारत के विभिन्न हिस्सों के साथ बुंदेलखंड में भी पूरी तरह से रहा और इसके प्रभाव में लगातार बारिश के कारण तापमान में भारी गिरावट से क्षेत्र में सर्दियों का आगाज हो गया है। इतना ही नहीं बेमौसम बारिश से खरीफ की फसल को बड़ा नुकसान हुआ है।
मौसम वैज्ञानिक ए के सिंह ने ” बुंदेलखंड कनेक्शन ” से बातचीत में बताया कि बताया कि चक्रवाती तूफान का असर बुंदेलखंड के मौसम पर साफ तौर पर रहा और कल भी इसके प्रभाव में बारिश होने के आसार है। हालांकि दोपहर बाद से इसका असर कम होना शुरू होगा। कल के बाद मौसम खुलने की संभावना है।
बुंदेलखंड में सर्दी का आगाज:
उन्होंने बताया कि इस तूफान के प्रभाव में तापमान में आयी कमी में आगे बढोतरी होने की संभावना नहीं है। इस कारण से बुंदेलखंड में इस बार सर्दी का आगाज समय से पहले ही हो गया है। दिन की अवधि घट गयी है और सूर्य की तपन भी कम हो गयी है। ऐसे में आगे तापमान बढ़ने की कोई संभावना नहीं है। इस तूफान में प्रभाव में मौसम ने करवट बदल दी है।
आमतौर पर बुंदेलखंड में सर्दियों की शुरूआत 20 नवंबर से गुलाबी ठंड का आगाज हो जाता है जो 20 दिसंबर तक कड़ाके की सर्दी में बदल जाती है और फिर 20 जनवरी तक जबरदस्त ठंड रहती है। इसके बाद 20 जनवरी से ठंड में कमी आने लगती है और 20 फरवरी से 20 मार्च के बीच फिर से गुलाबी ठंड का मौसम रहता है लेकिन इस बार परिस्थितियां पूरी तरह से बदल चुकी हैं। सर्दियों के आगाज के साथ क्षेत्र में नजर आने वाला गुलाबी ठंड का दौर इस बार नहीं दिखेगा और तापमान गिरने के कारण इस क्षेत्र में सर्दी का आगाज समय से पहले ही हो गया है।
खरीफ की फसल को जबरदस्त नुकसान:

मौसम वैज्ञानिक ने बताया कि बुंदेलखंड में खरीफ की फसल के रूप में धान, मूंगफली और तिल की फसल होती है और इस बारिश के कारण खेत में पककर तैयारी खड़ी इन फसलों को जबरदस्त नुकसान हुआ है । इसी कारण यहां किसानों को मौसम में हुए बदलाव से बहुत अधिक नुकसान हो रहा है।इस बारिश ने खरीफ की फसल को तो पूरी तरह चौपट कर ही दिया है साथ ही आगे आने वाले रबी सीजन के लिए भी दलहन और तिलहन की बुवाई प्रभावित होगी।
अभी बुवाई का सबसे मुफीद समय है लेकिन अब वह टल गया है । बुवाई में होने वाली देरी से दलहन और तिलहन की पैदावार पर भी प्रभाव पड़ेगा। इस बारिश से केवल गेंहू की फसल को फायदा है। गेंहू उत्पादक किसानों को बिना पलेवा ही बीज बोने की सुविधा मिल जायेगा। पलेवा (खेत में सिंचाई) जरूरत नहीं होगी। गेंहू उत्पादक किसानों के लिए यह बहुत अच्छा है।
बुंदेलखंड में अतिवृष्टि:
श्री सिंह ने बताया कि पूरे वर्ष में ही बुंदेलखंड में औसत वर्षा 850 मिलीमीटर होती है लेकिन इस बार जनवरी से लेकर अक्टूबर के अंत तक 1500 मिली मीटर वर्षा हो चुकी है जबकि वर्ष अभी समाप्त नहीं हुआ है। मानसून काल में भी बुंदेलखंड में अतिवर्षा हुई। मानसूनी सत्र से अब तक 1400 मिलीमीटर वर्षा हुई है जो अतिवृष्टि की श्रेणी में आता है। इसके कारण बुंदेलखंड क्षेत्र की मुख्य खरीफ फसल जिसमें मूंगफली, उर्द, मूंग और तिल की बुवाई का ग्राफ बहुत ही नीचा रहा है । केवल तीस से चालीस प्रतिशत ही बुवाई हो पायी। धान की फसल का क्षेत्र बढ़ा था लेकिन अंतिम समय में हुई इस बारिश के कारण वह फसल भी नष्ट हो गयी।
बुंदेलखंड में जलवायु परिवर्तन का असर:
उन्होंने बताया कि यह जलवायु परिवर्तन का ही असर है कि सूखाग्रस्त क्षेत्र कहलाने वाले बुंदेलखंड में इस साल अतिवृष्टि हुई। कभी यहां सूखे के कारण बरबाद होने वाली फसलें इस साल अतिवृष्टि के कारण बरबाद हुईं।कभी सूखे की मार झेलकर बरबाद होने वाला बुंदेलखंड का किसान इस बार अतिवृष्टि के कारण बरबाद हो रहा है। कहा जा रहा है कि अनावृष्टि हो या अतिवृष्टि बुुंदेलखंड के किसान पर मौसम की मार लगातार है।
वैभव सिंह
बुंदेलखंड कनेक्शन
