भारत : दुनिया का दवाखाना

भारत के बढ़ते दवा उद्योग से खतरे में आयी बड़े बड़े देशों की दवा कंपनियां

नयी दिल्ली 06 जनवरी । दुनिया का बड़ा दवाखाना कौन है? कौन है?? कौन है??? जवाब मालूम है क्या है तो जनाब चौड़ा करें अपना सीना और गर्व से कहें कि वह देश और कोई नहीं बल्कि “ भारत” है। जी हां भारत जिसे तथाकथित विकसित देशों ने न जाने कितनी नकारात्मक संज्ञाओं से विभूषित किया लेकिन आज न केवल यह देश बल्कि पूरी दुनिया ही सस्ती और उच्च गुणवत्ता वाली दवाओं के लिए भारत की ओर देखती है।

भारत : दुनिया का दवाखाना

इसी का नतीजा है कि आज भारत को दुनिया का दवाखाना के रूप में जाना जा रहा है। भारतीय कंपनियों ने कम कीमत पर लगातार उच्च गुणवत्ता वाली दवाएं बनाकर आज देश को इस गौरवांवित कर देने वाले मुकाम पर पहुंचाया है और साथ ही देश की सरकार ने इन कंपनियों को काम करने के लिए सहज और जरूरी साजोसामान मुहैया कराने के लिए उद्योगउन्मुख नीतियां बनाकर ऐसी मदद की कि इनका काम लगातार आसान होता गया।
ऐसा नहीं है कि आज ही दुनिया को अचानक भारत कोई संख्या में दवाओं का निर्यात करने लगा है इससे पहले भी दुनिया के तमाम देश जिनमें कई विकसित राष्ट्र भी शामिल हैं भारत से बड़े स्तर पर दवा आयात करते रहे हैं लेकिन कोराेना काल में प्रभावी नेतृत्व द्वारा प्रदान किये गये भरोसे से ओतप्रोत भारतीय कंपनियों ने कई ऐतिहासिक कीर्तिमान स्थापित किए जैसे वैक्सीन निर्माण, मास्क उत्पादन, ऑक्सीजन प्लांट निर्माण और मेडिकल से जुड़े कई जरूरी उपकरण इत्यादि को लेकर देश में इतने बड़े स्तर पर काम हुआ कि आने वाले समय में अब शायद ही कभी इनकी कमी देश को खलेगी।

ऐसे बढ़ी साख

केवल इतना ही नहीं भारत ने इतने व्यापक स्तर पर दवाओं से लेकर मेडिकल से जुड़े तमाम जरूरी उपकरणों का निर्माण किया कि उन्हें अन्य देशों में जरूरत पड़ने पर भेजा भी गया। यही वह कदम था जब पूरी दुनिया कोरोना के समक्ष लाचार नजर आ रही थी लेकिन भारत उस मुश्किल घड़ी में भी पूरी दुनिया की मदद करने के लिए आगे हाथ बढ़ा रहा था।
कोरोना काल में भारत ने दुनिया का विश्वास जीतने का महत्वपूर्ण कार्य किया।देश के दवा उद्योग में हुई 146 प्रतिशत की वृद्धियही कारण है कि वर्ष 2030 तक भारतीय फार्मा बाजार के 130 अरब अमेरिकी डॉलर तक बढने की उम्मीद व्यक्त की जाती है। वहीं 2025 तक भारत में चिकित्सा उपकरणों के उद्योग के 50 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंचने की क्षमता है।साल 2013-14 के अप्रैल-जुलाई माह में दवा उद्योग का निर्यात 20,596 करोड़ रुपए था जो 2022-23 की इसी अवधि में 50,714 करोड़ रुपए हो गया। इसका मतलब है कि इस दौरान दवाओं के निर्यात में 146% की भारी वृद्धि हुई।

बढ़ता व्यापार नई चुनौतियाँ,और खतरा

यह आंकडे जहां एक ओर भारतीयों में गौरव का संचार करते हैं वहीं एक खतरे की ओर भी आगाह करते हैं जिसकी आहट पिछले कुछ समय में यदा कदा सुनायी दे रही है। दुनिया के दवा उद्योग में भारत के बढ़ते कदम इस क्षेत्र में हमारे प्रतिस्पर्धियों के लिए खतरे की एक घंटी हैं जो हमारे लिए पहले से भी अधिक सावधानी से काम करने की आवश्यता पैदा करती है।
भारतीय दवा के खरीदारों में अफ्रीकी देश बड़ी संख्या है कुछ समय पहले ही एक अफ्रीकी देश गाम्बिया ने अक्टूबर 2022 में एक भारतीय कफ सीरप पीकर 70 बच्चों की मौत होने की बात कही। इस खबर पर डब्ल्यूएचओ ने मुहर लगा दी जिसके बाद तो दुनिया में भारतीय दवाओं पर बड़ा प्रश्नचिंह लग गया लेकिन भारत में संबंधित दवा की पूरी जांच की गयी और उसमें कुछ भी गलत नहीं पाया गया । इसके बाद जब गाम्बिया से भारतीय दवा पीकर बच्चों के मरने के उसके दावे के संबंध में साक्ष्य मांग गये तो वह मुकर गया। गाम्बिया सरकार ने अपनी किरकिरी के बाद सार्वजनिक रूप से माना कि उसके पास कोई प्रमाण नहीं हैं जिससे यह साबित हाे सके कि उसके देश में मारे गये 70 बच्चे भारतीय दवा पीने से मरे।
आरोप साबित हुए निराधार
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार इसके बाद भारत के औषधि महानियंत्रक (डीसीजीआई) डॉ़ वी जी सोमानी ने डब्ल्यूएचओ को चेतावनी देेते हुए कहा था कि इस वैश्विक संस्था ने भारतीय दवाओं पर जिस तरह के आरोप लगाए थे वह गलत थे। डब्ल्यूएचओ को लिखे पत्र में डॉ़ सोमानी ने कहा कि आपने जिन दवाओं पर आरोप लगाये थे उनकी सरकारी प्रयोगशालाओं में जांच बिल्कुल सही पायी गयी है यह सभी दवाएं सारे मानकों पर खरी उतरीं हैं। हमारे यहां दवाओं की निगरानी और जांच बहुत गंभीरता से की जाती है।
कारण स्पष्ट है कि देश को दवा उद्योग से इतना फायदा हुआ है। सरकार भी इसमें कोई कौताही नहीं बरतेगी यह साफ है और ऐसा कोई कारण पैदा नहीं होने देगी जिससे देश की इस क्षेत्र में बनी साख पर किसी तरह का बट्टा लगे। भारत अब बहुत बड़ा ब्रांड है वह “ वर्ल्ड की फारमेसी है । इसी क्रम में अब उज्बेकिस्तान ने एक अन्य भारतीय दवा पर आरोप लगाये हैं। इसने आरोप लगाये कि भारतीय कफ सीरप पीकर हमारे देश के 18 बच्चे मर गये। इस आरोप के बाद डब्ल्यूएचओ ने जांच में उज़बेकिस्तान के सहयाेग की बात कही है तो भारत ने भी जांच में सहयोग की बात कही है। देश में इसकी जांच शुरू कर दी है और उज़बेकिस्तान से उसकी जांच रिपोर्ट मांगी गयी है।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार उज़बेकिस्तान सरकार ने माना है कि बच्चों को कफ सीरप बिना डॉक्टर की सलाह के दिये गये थे और सर्दी खांसी जुकाम होने पर दो से सात दिन तक दिन में चार बार दवा दी गयी।डोज की मात्रा 2़ 5 मिलीलीटर से पांच मिलीलीटर थी जो कि बच्चों के लिए तय मानक खुराक से ज्यादा है। हालांकि जांच जारी है भारत ने भी सहयोग की बात कही है।
और सावधान ज़रुरी
इस तरह के आरोप भारतीय दवाओं पर लगाकर कहीं न कहीं दुनिया में दवा क्षेत्र में बढ़ते भारतीय कद को कम या छोटा करने की कवायद शुरू होने का शक भी पैदा करते हैं। कुछ समय पहले गाम्बिया के आरोप और उनके जांच के बाद निराधार पाये जाने और पूरे मामले में एक बार फिर से डब्ल्यूएचओ की विश्ववसनीयता पर सवाल उठे। ऐसी आरोपों और घटनाओं के बीच अपने देश की दवा क्षेत्र में सफलता को बरकरार रखने तथा उसे नयी ऊचाईयों तक पहुंचाने के लिए और गंभीरता से काम किये जाने की आवश्यकता है।

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