मेजर ध्यानचंद की पुण्यतिथि पर विशेष
झांसी। मेजर ध्यानचंद एक ऐसा व्यक्तित्व जिन्होंने अपनी असाधारण प्रतिभा के दम पर न केवल हॉकी के खेल में असाधारण ऊंचाइयों को हासिल किया बल्कि इस खेल में दुनिया भर में देश का परचम बुलंदियों पर लहराया।

हॉकी के खेल में गेंद पर उनके असाधारण नियंत्रण ने उन्हें हॉकी के जादूगर के रूप में स्थापित किया। हॉकी के इस महान खिलाड़ी की कर्मभूमि बुंदेलखंड की धरती झांसी रही,जहां स्थित वर्तमान के हीरोज ग्राउंड पर उन्होंने अपने खेल को तराशा। इस मैदान की पथरीली जमीन पर पूरे समर्पण के साथ मेजर ध्यानचंद नेखुद को कुछ ऐसे तैयार किया की पूरी दुनिया ने उनके खेल का लोहा माना।
मेजर ध्यानचंद और हीरोज़ ग्राउंड के बीच के अति महत्वपूर्ण पहलुओं को उद्घाटित करते हुए उनके पुत्र और स्वयं हॉकी के बड़े खिलाड़ी तथा अर्जुन अवार्ड से सम्मानित अशोक ध्यान चंद ने बताया कि जहां आज हीरोज ग्राउंड है यह पहले चांदमारी ग्राउंड के नाम से जाना जाता था।

मेजर ध्यानचंद का जन्म 1905 में इलाहाबाद में हुआ था और उसके बाद पूरा परिवार आर्मी की शिफ्टिंग झांसी में होने के साथ ही झांसी चला आया था ।यहां आने के बाद मेजर ध्यानचंद इसी मैदान पर हॉकी खेल करते थे। उनका मन पढ़ाई में ज्यादा नहीं लगता था । चांदमारी मैदान पर ही अपने बचपन के दिनों में मेजर ध्यानचंद ने पथरीली जमीन पर नंगे पैर हॉकी के अपने खेल को मांझा और तराशा था हालांकि उस समय वह इस बात से पूरी तरह से अनजान थे कि यही वह खेल है जो उन्हें न केवल देश बल्कि पूरी दुनिया में एक नया मुकाम हासिल करने में मदद करेगा।
उनके खेलने से परेशान होकर उनके दादाजी ने उन्हें तत्कालीन अंग्रेजों की सेना में ब्राह्मण रेजीमेंट में भर्ती करा दिया था । यहां चांदमारी ग्राउंड पर फायरिंग रेंज हुआ करती थी और इसी मैदान पर अंग्रेज सैनिक और अधिकारी खेलते थे।
इसी मैदान पर खेलते हुए उनके जबरदस्त खेल पर सेना के अधिकारियों की नजर पड़ी और उनके हुनर को पहचाना गया जिसके बाद उन्हें 1922 से 26 के बीच विशेष रूप से सेना हॉकी टूर्नामेंट और रेजीमेंट खेलों में शामिल किया गया। आखिरकार उन्हें भारतीय सेना की टीम के लिए चुना गया और न्यूजीलैंड के दौर में उन्हें टीम का हिस्सा बनाया गया। यहां खेले गए 21 माचो में कल 201 गोल किए गए जिसमें से 68 गोल अकेले मेजर ध्यान चंद ने किए थे।
1928 में एमस्टरडम ओलंपिक में मेजर ध्यानचंद के जबरदस्त खेल के बल पर भारतीय टीम ने देश के लिए अपना पहला ओलंपिक स्वर्ण पदक जीता। इस दौरान मेजर ध्यानचंद ने ऐसे अद्भुत खेल का नजारा पेश किया कि उन्हें हॉकी के जादूगर की संज्ञा दी गई। इससे पहले मेजर ध्यानचंद का नाम मेजर ध्यान सिंह था लेकिन उनके अद्भुत खेल से मुग्ध उनके प्रशंसकों ने उन्हें हॉकी के आसमान का चमकता हुआ चांद कहा और उनके नाम के साथ चांद भी जुड़ गया। इसके बाद मेजर ध्यान सिंह ,मेजर ध्यानचंद के नाम से प्रसिद्ध हो गए और और आज भी उन्हें इसी नाम से जाना जाता है। उन्होंने 1932 , 1936 के ओलंपिक खेलों में भी भारत को स्वर्ण पदक दिलाने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
मेजर ध्यानचंद का पूरा जीवन खेलों को ही समर्पित रहा और उन्होंने अपने पूरे खेल जीवन में 1000 से भी ज्यादा खेल गोल दागे । मेजर ध्यानचंद अपने खेल को सजाने और संवारने का काम जिस चांदमारी ग्राउंड में किया उसे 1921 के बाद हीरोज ग्राउंड के रूप में जाना गया। इसी ग्राउंड पर उनका अंतिम संस्कार भी किया गया और यही उनकी समाधि भी बनाई गई है ।

उनके सुपुत्र और हॉकी के महान खिलाड़ी अर्जुन अवार्ड से सम्मानित अशोक ध्यानचंद ने बताया कि मेजर ध्यानचंद जी के जीवन में हीरोज ग्राउंड का जबरदस्त महत्व है । झांसी जिला प्रशासन ने भी हीरोज ग्राउंड के जीर्णोद्धार का काम किया और इसको काफी अच्छे तरीके से विकसित किया गया है लेकिन आज भी यहां पर एस्ट्रोटर्फ नहीं लग पाई है जिसके लिए वह लगातार प्रयासरत है ।
उन्होंने कहा कि वह चाहते हैं कि आधुनिक हॉकी जिस एस्ट्रोटर्फ पर खेली जाती है वह ध्यानचंद जी से जुड़े इस अति महत्वपूर्ण मैदान पर भी लगाई जाए। उन्होंने इसको लेकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से भी मुलाकात की और उनके समक्ष भी यह मांग उठाई जिसके जवाब में मुख्यमंत्री की ओर से उन्हें सकारात्मक जवाब दिया गया है। उनका कहना है कि अब इंतजार है कि कब दद्दा के इस प्रिय मैदान पर एस्ट्रोटर्फ लगती है और झांसी के उदीयमान खिलाड़ियों को भी मेजर ध्यान ध्यानचंद की छत्रछाया में इस मैदान पर आधुनिक हॉकी खेलने का मौका मिलता है ।
