झांसी 24 अप्रैल । झांसी स्थित बुंदेलखंड विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग को महान साहित्यकार सदासुखलाल द्वारा रचित सुख सागर की दुर्लभ कृति आज भेंट की गयी।
यह किताब सुख सागर की सबसे पुरानी कृति है और इसे हिन्दी विभाग में शांति देवी पत्नी स्व. प. गोविंद दास उपाध्याय (पिता) दादाजी स्व. प. बालादीन उपाध्याय (सर्राफ) परदादा स्व. प. खूबचंद सर्राफ सूपा महोबा एवं अशोक कुमार उपाध्याय एवं अनिल कुमार उपाध्याय (झांसी) द्वारा दी गई।
अधिष्ठाता कला संकाय और अध्यक्ष हिन्दी विभाग प्रो. मुन्ना तिवारी ने बताया कि हिन्दी विभाग दुर्लभ साहित्यिक कृतियों को संकलित और संग्रहित करने का कार्य कर रहा है। इसके तहत बुन्देलखंड क्षेत्र के साहित्यकारों के साथ ही अन्य क्षेत्रों के साहित्यकार की कृतियों को संकलित किया जा रहा है।
प्रो. तिवारी ने बताया कि आज सदासुखलाल द्वारा रचित सुखासागर बुंदेलखंड विश्वविद्यालय को प्राप्त हुई। यह कृति विद्यार्थियों को देखने एवं शोध के लिए हिन्दी विभाग में उपलब्ध रहेगी। उन्होंने बताया कि इस किताब का प्रकाशन 1898 में किया गया था। यह एक दुर्लभ कृति है। सुखसागर के बारे में प्रो. तिवारी ने बताया कि सुख का सागर” अमरलोक यानि कि सतलोक है।इसका वर्णन पवित्र श्रीमद्भागवत गीता जी के अध्याय 15 श्लोक 4 और अध्याय 18 श्लोक 62 में किया गया है। सतलोक में सुख ही सुख है और वहां जाने के बाद व्यक्ति जन्म और मृत्यु के चक्र से छुटकारा पा लेते हैं।
उल्लेखनीय है कि हिंदी विभाग में बुंदेली वीथिका और वृन्दावनलाल वर्मा पांडुलिपि दीर्घा का निर्माण हुआ है । उसमें अभी तक ,पद्माकर की पांडुलिपि ,वृंदावन लाल वर्मा की संपूर्ण मूल पांडुलिपि , मैथिलीशरण गुप्त,तथा सिया राम शरण गुप्त की पांडुलिपि प्रतिलिपि, रामचरित मानस की पांडुलिपि प्रतिलिपि, लगभग एक दर्जन बुंदेली रचनाकारों की मूल पांडुलिपि प्राप्त हो गई है ।
प्रो विश्वनाथ प्रसाद तिवारी की काव्य संग्रह और यात्रा वृतांत तथा प्रो रामदेव शुक्ल के एक उपन्यास तथा एक गद्य अनुवाद की मूल पांडुलिपि प्राप्त हो चुकी है। कुलपति प्रो मुकेश पाण्डेय, रजिस्ट्रार विनय कुमार सिंह, परीक्षा नियंत्रक राज बहादुर, वित्ताधिकारी वसी मोहम्मद सहित सभी शिक्षकों ने विभाग को बधाई दी तथा दानदाता उपाध्याय परिवार का आभार व्यक्त किया। इस अवसर पर हिन्दी विभाग के शिक्षक, विद्यार्थी एवं अन्य उपस्थित रहे।
वैभव सिंह
बुंदेलखंड कनेक्शन