झांसी। हिन्दू धर्म में नवरात्र का बड़ा विशेष महत्व है। नवरात्र के दूसरे दिन माता ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है। मां ब्रह्मचारिणी भक्त को विद्या, विवेक और आध्यात्मिक शक्ति का आशीर्वाद देती हैं। उनकी आराधना से जीवन में निर्णय लेने की क्षमता और सच्चे ज्ञान की ज्योति मिलती है।
दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥
स्वरुप:
नवदुर्गाओं में माँ दुर्गा की द्वितीय शक्ति के रूप में माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा होती है। ‘ब्रह्म’ का अर्थ है तप और ब्रह्मचारिणी का अर्थ है तप का आचरण करने वाली। इनका स्वरूप पूर्ण ज्योतिर्मय और अत्यंत भव्य है। माँ के दाहिने हाथ में जपमाला और बाएँ हाथ में कमण्डल सुशोभित रहता है।
कथा:
जब माँ ने पर्वतराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया, तब नारद मुनि के उपदेश से उन्होंने भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने का निश्चय किया। इस संकल्प को सिद्ध करने के लिए उन्होंने अत्यंत कठिन और दीर्घकालीन तपस्या आरंभ की। इसी तप के कारण वे ब्रह्मचारिणी या तपश्चारिणी कहलाईं।
उन्होंने एक सहस्र वर्षों तक केवल फल का सेवन किया। फिर सौ वर्षों तक केवल शाक पर निर्वाह किया। उसके बाद कई वर्षों तक खुले आकाश के नीचे वर्षा, धूप और शीत की कठोर पीड़ाओं को सहते हुए उपवास करती रहीं। तीन हजार वर्षों तक उन्होंने केवल बेलपत्र खाकर जीवन व्यतीत किया और भगवान शंकर की निरंतर आराधना करती रहीं। अंततः उन्होंने बेलपत्र तक त्याग दिए और निर्जल, निराहार रहकर कई हजार वर्षों तक तपस्या जारी रखी। पत्तों तक का त्याग कर देने से उनका एक नाम अपर्णा पड़ा।
इतनी कठिन तपस्या के कारण उनका शरीर अत्यंत कृशकाय और क्षीण हो गया। यह दशा देखकर उनकी माता मैना व्याकुल हो उठीं और उन्होंने माता को पुकारा: “उ मा!” तभी से उनका एक नाम उमा भी प्रसिद्ध हो गया।
देवी ब्रह्मचारिणी की कठोर तपस्या से तीनों लोकों में हलचल मच गई। देवगण, ऋषि, सिद्ध और मुनि सभी ने उनकी तपस्या को अद्वितीय और अभूतपूर्व कहा। अंततः स्वयं पितामह ब्रह्मा ने आकाशवाणी की। उन्होंने कहा, “हे देवी, आज तक किसी ने ऐसा कठोर तप नहीं किया। यह तप केवल तुमसे ही संभव था। तुम्हारी यह अलौकिक साधना समस्त जगत में प्रशंसा का विषय है। तुम्हारी मनोकामना अवश्य पूर्ण होगी। भगवान चन्द्रमौलि शिव तुम्हें पति रूप में प्राप्त होंगे। अब तप का त्याग कर गृह लौटो, तुम्हारे पिता शीघ्र ही तुम्हें बुलाने आ रहे हैं।”
मंदिर:
माँ ब्रह्मचारिणी का वास वाराणसी नगरी में माना जाता है। यहां उनका एक प्राचीन मंदिर स्थित है, जिसके बारे में विश्वास है कि इनके दर्शन मात्र से भक्तों को अनंत फल की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि नवरात्र के दूसरे दिन जो भी श्रद्धालु माँ ब्रह्मचारिणी के दर्शन करता है, उसके जीवन में तप, त्याग, वैराग्य और सदाचार की वृद्धि होती है तथा कठिन से कठिन संघर्ष में भी उसे विजय और सिद्धि प्राप्त होती है।
अनमोल दुबे, वैभव सिंह