झांसी । बुंदेलखंड की गंगा के नाम से विख्यात बेतवा नदी में दिनोंदिन अवैध खनन जिस तेजी से और लगभग नदी की पूरी धारा पर ही जितनी तीव्रता से बढ़ता जा रहा है ,उसे देखते हुए यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि लंबे समय से सूखाग्रस्त क्षेत्र होने का दंश झेल रहा यह क्षेत्र जल्द ही अपने इलाके की जल-जीवनरेखा को भी खोने जा रहा है।


बेतवा नदी झांसी के साथ साथ बुंदेलखंड में जालौन और हमीरपुर में बुरी तरह से अवैध खनन का दंश झेल रही है। इन क्षेत्रों के लिए पानी के एक अहम स्रोत वाली यह नदी इसी क्षेत्र में रहने वाले लोगों की अनदेखी से आज समाप्ति की ओर तेजी से कदम बढ़ा रही है। बेतवा में जबरदस्त रूप से खनन के लिए जालौन और हमीरपुर तो पहले ही कुख्यात थे लेकिन अब झांसी जनपद में भी इस जीवनदायिनी नदी का ही जीवन समाप्त करने की कवायद जोरों पर है। बेतवा की इस बदहाली पर शासन से लेकर प्रशासन तक सब मौन हैं इतना ही नहीं समाजसेवी, पर्यावरणप्रेमी और नदी का जीवन समाप्त होने से सर्वाधिक प्रभावित होने वाली यहां की जनता भी खामोश है । यही कारण है कि नदी बचाने को लेकर कहीं से कोई आवाज उठती नजर नहीं आती है।
नदी की दयनीय हालत को देखकर ऐसा लगता है कि मानवता की बड़ी बड़ी बाते करने वाले हम सभी लोग जिंदा लाशों में तब्दील हो चुके हैं। पूरी मानव जाति न जाने क्या ऐसा पाने की होड़ में भागे जा रही है कि जो अमूल्य , प्रकृति की ओर से भेंटस्वरूप पहले से ही मिला हुआ है उसका इंसान के लिए कोई महत्व ही नजर नहीं आ रहा है । इंसान इन प्राकृतिक धरोहर के साथ अपने नाजुक रिश्ते को न तो समझ रहा है और इस पर संकट से उसके खुद के अस्तित्व पर संकट जैसे आधार भूत सत्य से भी नजरे चुराता भाग रहा है।

झांसी जनपद में एनजीटी के दिशा निर्देशों को ताक पर रखकर जिस तरह से बेतवा की बीच धारा में मशीनों से गहरा खनन किया जा रहा है उससे नदी के अस्तित्व पर संकट बढ़ता ही जा रहा है जो इस क्षेत्र में निकट भविष्य में ही बड़े जल संकट का कारण बनने जा रहा है। ऐसे महत्वपूर्ण अस्तित्वगत सवाल पर जहां एक ओर विमर्श तो दूसरी ओर प्रभावी विरोध समय की मांग है वहीं दूसरी ओर समाज के हर वर्ग की चुप्पी कई सवाल खड़े करती है।
उत्तर प्रदेश में जो खनन मंत्रालय स्वंय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के आधीन है उस मंत्रालय के नदियों में इस अवैध खनन पर प्रभावी अंकुश लगाने में नाकामयाब रहना अपने आप में गंभीर सवाल खड़े करता है।
बेतवा और इस जैसी ही बुंदेलखंड की बाकी महत्वपूर्ण नदियों को अवैध खनन से बचाना न केवल इन नदियों के सदानीरा रूप को बरकरार रखने बल्कि इस क्षेत्र की बड़ी आबादी विशेषकर महिलाओं के संदर्भ में बेहद जरूरी है।


बुंदेलखंड पहले ही सूखाग्रस्त है और ऐसे में पानी के बड़े स्रोत के रूप में इस क्षेत्र में बहने वाली नदियों का महत्व किसी अन्य क्षेत्र की तुलना में निश्चित रूप से काफी अधिक है। अपने अस्तित्वगत जरूरत से जुड़े मुद्दों को लेकर इस क्षेत्र की जनता में भी जागरूकता का अभाव साफ तौर पर दिखायी देता है।यही कारण है कि सूख ग्रस्त इस इलाके में न केवल नदियों में अवैध खनन बल्कि अन्य जल स्रोतों जैसे तालाब, पोखर और बावड़ी आदि की बदहाली और अवैध कब्जों पर भी कहीं कोई जनाक्रोश दिखायी ही नहीं देता है। इतना ही नहीं इस क्षेत्र में काम करने वाले स्वयंसेवी संगठन और संस्थाएं भी मूक दर्शक बनीं हुई है।
यह समझने की दरकार है कि एक ओर हम अपनी नदियों को मां का दर्जा देते हैं तो दूसरी ओर उसकी ऐसी बदहाली पर हमें विचार करने या बात करने का भी समय नही है।नदियों के साथ यह बदसुलूकी मानवजाति के खुद के अस्तित्व के लिए बहुत दुखदायी होने जा रहा है ।
“ जल है तो जीवन है” स्कूलों में बच्चों को यह शिक्षा दी तो जरूर दे दी जाती है लेकिन वास्तविकता में धरातल पर न तो शासन -प्रशासन, न स्थानीय लोग और न ही समाजसेवी या पर्यावरणवादी संगठनों किसी का इस ओर कोई ध्यान है। अगर समय रहते बुंदेलखंड क्षेत्र की जनता नहीं जागी तो सरकार चाहें इस क्षेत्र की जनता की प्यास बुझाने के लिए कोई भी योजनाएं लाने का दावा करती रहे लेकिन वास्तविकता में पानी हर घर तक नल से पहुंचाना तो दूर नदी -नालों में भी देखने को नहीं मिलेगा।
