झांसी 10 अप्रैल । “ किन्नर” एक ऐसा शब्द जिसे समाज ने हमेशा अपने शुद्र स्वार्थों के हिसाब से परिभाषित किया है अधिकतर यह समुदाय लोगों के लिए उपहास या नफरत का ही पात्र रहा है । झांसी के कला सोपान संस्थान ने इस समाज के ऐसे अकथनीय कठिनाइयों से भरे जीवन के विविध रंगों को चित्रों के माध्यम से व्यक्त करने के लिए एक चित्रकला प्रदर्शनी का आयोजन किया है।
संस्थान ने समाज के इस बेहद महत्वपूर्ण वर्ग को लेकर आम लोगो की सोच में बदलाव के लिए एक छोटे से प्रयास के रूप में चित्रकला प्रदर्शनी का आयोजन यहां रानी लक्ष्मीबाई पार्क में किया जिससे वहां आने वाले सामान्य लोग भी चित्रों के माध्यम से यह समझ पाये कि एक किन्नर को जिसे हम या तो एक मजाक के रूप में लेते हैं या उनके लिंगगत भेद के कारण उन्हें सामान्य इंसान भी समझने की तार्किकता नहीं दिखा पाते , उस वर्ग के प्रति विचारविमर्श को सुनकर या उनके जीवन से जुडे चित्रों को देखकर इस वर्ग के प्रति अपनी सोच में बदलाव लाने का प्रयास करें ।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए बुंदेलखंड विश्वविद्यालय झांसी के अधिष्ठाता प्रो मुन्ना तिवारी ने कहा कि कला के माध्यम से सामाजिक जागरूकता को नया आयाम दिया जा सकता है। सामाजिक जागरूकता के द्वारा ही किन्नरों को समाज में वांछित स्थान दिलाया जा सकता है। श्री तिवारी ने कला सोपान द्वारा आयोजित इस चित्रकला प्रदर्शनी के लिए सभी को शुभकामनाएं दी।
चित्रकला प्रदर्शनी के विशिष्ठ अतिथि चौधरी संतराम पेंटर ने कहा कि आज किन्नर समुदाय हर क्षेत्र में अपनी उपस्थिति दर्ज कर रहा है। शिक्षा और जागरूकता ऐसे विषय हैं जिनसे किन्नर समाज आगे बढ़ रहा है और समाज में कंधे से कन्धा मिला कर काम कर रहा है। किन्नरों को रोजगार देकर अर्थव्यस्था को गति दी जा सकती है।
प्रदर्शनी की संयोजक एवं कला सोपान की अध्यक्ष डॉ. श्वेता पाण्डेय ने सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि इस चित्रकला प्रदर्शनी में झांसी जनपद के चयनित चित्रकारों की कलाकृतियों को प्रदर्शित किया गया है। आज जरूरत है कि कला को कला दीर्घा से बाहर निकाल कर सीधे समाज के सामने प्रदर्शित किया जाए इसीलिए इस चित्रकला प्रदर्शनी का आयोजन रानी लक्ष्मीबाई पार्क में किया गया। पार्क में आए हुए लोगों ने प्रदर्शनी को देखा और कला कृतियों को प्रशंसा की।
किन्नर के जीवन पर आधारित कला सीरीज बनाने वाले चित्रकार गजेंद्र ने बताया कि किसी के जीवन को जी कर उसे रंगों के माध्यम से उकेरना और समाज को उससे रूबरू कराने का प्रयास चित्रों के माध्यम से किया गया है। उन्होंने बताया कि एक किन्नर की जिंदगी कितनी कष्ट में होती है इसे जानने के लिए एक दिन किन्नर रूप में बाहर निकल कर देखना होगा। उनको महसूस करना होगा और उनसे जुड़ने का प्रयास करना होगा।
कला सोपान के सचिव डॉ. उमेश कुमार ने अतिथियों का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि मानव और पशु अथवा पक्षी संयुक्त भारतीय कला का एक अभिप्राय। इसकी कल्पना अति प्राचीन है। शतपथ ब्राह्मण में अश्वमुखी मानव शरीरवाले किन्नर का उल्लेख है। बौद्ध साहित्य में किन्नर की कल्पना मानवमुखी पक्षी के रूप में की गई है। मानसार में किन्नर के गरुड़मुखी, मानवशरीरी और पशुपदी रूप का वर्णन है। इस अभिप्राय का चित्रण भरहुत के अनेक उच्चित्रणों में हुआ है।
इस चित्रकला प्रदर्शनी में गजेन्द्र, नंदनी, मेघा, अलादीन, मोहित, ब्रजेश पाल, रेखा आर्य सिद्धार्थ, प्रतीक्षा, रौनक आशीष, पायल एवं अन्य की कृतियों को प्रदर्शित किया गया है ।
वैभव सिंह
बुंदेलखंड कनेक्शन