झांसी 30 अक्टूबर । राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन द्वारा मंडलीय इको कॉन्फ्रेंस के माध्यम से आयोजित सेमीनार में महारानी लक्ष्मीबाई मेडिकल कॉलेज के टीबी और चेस्ट विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ़. मधुरमय ने देश में बढ़ते प्रदूषण के कारण सांस संबंधी रोगों के बढ़ते खतरे को रेखांकित किया।
हैल्थ एण्ड वेलनेस सेन्टर पर कार्यरत् सी.एच.ओ. के लिए उपयोगी सीओपीडी और अस्थमा: प्राथमिक उपचार व रोकथाम विषय पर आयोजित वर्चुअल सेमीनार में डॉ़ शास्त्री ने बताया कि ग्लोबल वर्डन ऑफ अस्थमा एण्ड सी.ओ.पी.डी. की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में सी.ओ.पी.डी. व अस्थमा के मरीज अन्य देशों की तुलना में सर्वाधिक हैं वहीं दूसरी ओर इससे होने वाली मौतों के मामलों में भारत दूसरे स्थान पर है जोकि एक चिन्ता का विषय है। इसी प्रकार अस्थमा का प्रिवलेंस और मौत के मामले में भारत की स्थिति चिंताजनक है।
सी.ओ.पी.डी. व अस्थमा जैसी फेफड़ों की बीमारियों में वृद्धि के लिये जहां एक ओर प्रदूषण मुख्य कारण है वहीं दूसरी ओर अनेक सामाजिक कारण तथा इस बीमारी के प्रति सजगता की कमी है।
ग्रामीण क्षेत्रों में संचालित हैल्थ एण्ड वेलनेस सेन्टर पर कार्यरत् सी.एच.ओ. मरीजों के समय से उपचार के लिये एक ऐसे सम्पर्क सूत्र हैं जिनके माध्यम से मरीजों के अस्थमा व सी.ओ.पी.डी. के लक्षणों की प्रारम्भिक पहचान कराते हुये उन्हें समुचित उपचार दिलाया जा सकता है।
डा. शास्त्री ने बताया कि सांस का फूलना यह दर्शाता है कि सांस की नलियों में सूजन या सिकुड़न है जिसके सही उपचार न होने से मरीज को गंभीर समस्या का सामना कर पड़ सकता है यहाँ तक कि मृत्यु भी हो सकती है। ऐसी स्थिति में मरीज स्वयं से दवा न लें बल्कि रजिस्ट्रर्ड मेडिकल प्रेक्टीशनर से ही परामर्श के बाद ही दवाएँ लें। उन्होंने यह भी बताया कि इन्हेलेशन थेरपी अस्थमा व सी.ओ.पी.डी. का कारगर उपचार है।
सेमीनार के दौरान एन.एच.एम. के मण्डलीय परियोजना प्रबंधन आनन्द चौबे ने कहा कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के अन्तर्गत एन.सी.डी. बीमारियों के उपचार हेतु सभी हैल्थ एण्ड वेलनेस सेन्टर पर पर्याप्त दवाईयां व सी.एच.ओ. के माध्यम से परामर्श सेवाएँ उपलब्ध हैं। साथ ही मच्छर भगाने के लिये उपयोग की जाने वाली एक क्वाइल सौ सिगरेट के बराबर नुकसानदेह होने के कारण बेहतर है कि मच्छरदानी का उपयोग करें.
सेमीनार में झांसी मण्डल के तीनों जिलों के लगभग 300 सी.एच.ओ. ने भाग लिया। सेमिनार का संचालन मण्डलीय परियोजना प्रबंधक, एन.एच.एम. आनन्द चौबे ने किया।
सीओपीडी/अस्थमा के कारण के रूप में लंबे समय तक धूम्रपान और अधिक तंबाकू उत्पादों के सेवन को रेखांकित किया गया। इनका सेवन जितना अधिक सीओपीडी विकसित होने की संभावना भी उतनी अधिक होती है।सिगरेट, सिगार के धुएं, पाइप/हुक्का के धुएं और सेकेंड हैंड धुएं के कारण भी सी.ओ.पी.डी./अस्थमा हो सकता है।
इसके लक्षणों के रूप में लगातार खांसी, बलगम का उत्पादन बढ़ना, सांस लेने में तकलीफ (विशेषकर जोरदार परिश्रम के बाद), घरघराहट और सीने में जकड़न होना और अचानक वजन का कम होना है।
वैभव सिंह
बुंदेलखंड कनेक्शन