झांसी। बुंदेलखंड के झांसी स्थित रानी लक्ष्मीबाई केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय ने जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने एवं किसानों को कम समय में अधिक उत्पादन देने वाली फसलों की उन्नत किस्में उपलब्ध कराने के उद्देश्य से स्थापना की है। इस सुविधा से अब परंपरागत रूप से 9–10 वर्षों में विकसित होने वाली फसल प्रजातियां सिर्फ 6–7 वर्षों में तैयार की जा सकेंगी।

स्पीड ब्रीडिंग तकनीक की विशेषता यह है कि फसल को नियंत्रित जलवायु में अधिक रोशनी एवं उपयुक्त तापमान देकर उसकी वृद्धि दर को तेज किया जाता है, जिससे एक वर्ष में ही 3–4 पीढ़ियाँ ली जा सकती हैं। इस सुविधा का उपयोग विशेष रूप से चना, कठिया गेहूं, सरसों एवं मूंगफली जैसी मुख्य फसलों में किया जा रहा है। खासतौर से मूंगफली जैसी तिलहनी फसल, जो बुंदेलखंड के किसानों की प्रमुख आय का स्रोत है, उसके लिए यह तकनीक वरदान साबित होगी।
कुलपति डॉ. अशोक कुमार सिंह ने स्पीड ब्रीडिंग सुविधा का भ्रमण करते हुए वैज्ञानिकों को निर्देशित किया कि वे बुंदेलखंड क्षेत्र की कृषि समस्याओं, विशेष रूप से सूखा एवं जलवायु अस्थिरता को ध्यान में रखते हुए ऐसी किस्में विकसित करें जो कम पानी एवं उच्च तापमान में भी अच्छा उत्पादन दे सकें। इस अत्याधुनिक सुविधा के माध्यम से बुंदेलखंड में खेती की उत्पादकता में उल्लेखनीय सुधार होगा और कृषक समुदाय को जलवायु परिवर्तन से लड़ने में मदद मिलेगी।

डॉ. एसके चतुर्वेदी, निदेशक (शोध) ने बताया कि स्पीड ब्रीडिंग सुविधा में फसलों को कृत्रिम प्रकाश व्यवस्था के तहत लंबे समय तक प्रकाश दिया जाता है, जिससे चना, कठिया गेहूं, जौ आदि की फसलें सिर्फ 70–75 दिनों में तैयार हो जाती हैं। इससे वैज्ञानिकों को वर्ष भर में कई पीढ़ियाँ उगाने और तेजी से नई प्रजातियां विकसित करने का अवसर मिलता है।

डॉ. आरके सिंह, अधिष्ठाता (कृषि) ने कहा कि इस सुविधा से विद्यार्थियों को वैश्विक स्तर की तकनीक पर कार्य करने का अवसर मिलेगा, जिससे उनकी शोध की गुणवत्ता में वृद्धि होगी। डॉ. मनीष श्रीवास्तव, अधिष्ठाता (उद्यानिकी एवं वानिकी) ने सब्जियों की नई किस्मों के विकास में स्पीड ब्रीडिंग की संभावनाएं बताईं।
डॉ. जितेंद्र तिवारी, विभागाध्यक्ष (पादप प्रजनन), डॉ. रूमाना खान और डॉ. राकेश चौधरी ने प्रमुख फसलों के लिए उपयुक्त स्पीड ब्रीडिंग प्रोटोकॉल शीघ्र तैयार करने की आवश्यकता पर बल दिया।
स्पीड ब्रीडिंग सुविधा के माध्यम से विश्वविद्यालय मूंगफली जैसी तिलहनी फसलों पर विशेष ध्यान दे रहा है। यह फसल क्षेत्रीय जलवायु के अनुकूल होने के साथ-साथ स्थानीय किसानों के लिए आय एवं पोषण का महत्वपूर्ण स्रोत है। नई किस्मों के विकास से जहां उत्पादन बढ़ेगा, वहीं रोग एवं कीटों से सुरक्षा भी सुनिश्चित की जा सकेगी।
यह सुविधा न केवल वैज्ञानिकों के शोध को नई दिशा देगी, बल्कि बुंदेलखंड क्षेत्र में टिकाऊ एवं लाभकारी खेती की नींव भी मजबूत करेगी। यह तकनीकी पहल भविष्य की खाद्य सुरक्षा और पर्यावरणीय संतुलन के लिए एक बड़ा कदम साबित होगी।
वैभव सिंह
बुंदेलखंड कनेक्शन