झांसी 01 मई । देश और दुनिया की सबसे बड़ी और अनुशासित पार्टी कहलाने वाली भारतीय जनता पार्टी (भाजपा)) इन दिनों राजनीतिक दृष्टिकोण से देश के सबसे महत्वपूर्ण राज्य उत्तर प्रदेश में नगर निकाय चुनाव के मैदान में है। इसी प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र की झांसी नगर निगम की सीट प्रदेश की महत्वपूर्ण सीटों में से एक है। इस सीट पर पिछले दो बार से भाजपा ही चुनाव जीत रही है । इसी को देखते हुए इस सीट पर जीत पार्टी की नाक और साख का भी सवाल है।
प्रथम दृष्टया तो इस सीट पर सांसद, विधायक और पिछले मेयर पद को लेकर हुए चुनाव में भाजपा की स्थिति बेहद मजबूत नजर आ रही है लेकिन इस बार निकाय चुनाव में पार्टी के लिए जीत की राह इतनी आसान नहीं है। इस बार पार्टी के सामने बड़ी समस्या विपक्ष से अधिक पार्टी के भीतर से और आमजन के बीच से उठ रहे विरोध को लेकर है ।इस बड़ी समस्या को पार्टी भी देख और समझ रही है इसलिए चुनावी रण में भाजपा ने पूरी ताकत झोंक रखी है। भाजपा के महापौर उम्मीदवार बिहारी लाल आर्य के पक्ष में चुनावी हवा बनाने के लिए पार्टी के ऊपरी कैडर से लेकर क्षेत्र के विधायक और सांसद भी पूरा दमखम लगाये हैं।
ऐसी स्थिति में यह सवाल उठना लाजमी ही है कि जिस सीट पर भाजपा की लंबे समय से मजबूत पकड़ रही हो उस सीट पर निकाय चुनाव में पार्टी को आखिर इतना दम क्यों लगाना पड़ रहा है।तो यहां भाजपा की ओर से महापौर के पद पर बिहारी लाल आर्य के नाम की घोषणा किये जाने के बाद से ही पार्टी की मुश्किलें बढ़नी शुरू हो गयीं थीं । महापौर पद पर श्री आर्य का नाम सामने आते ही विरोध के स्वर न केवल जनता के बीच बल्कि पार्टी के भीतर से भी साफ सुनायी देने लगे। यह विरोध मात्र महापौर पद के उम्मीदवार को लेकर नहीं था बल्कि पार्षदों के रूप में भी 60 वार्डों में जो नाम पार्टी की ओर से सामने आये उनमें से अधिकतर को लेकर विरोध साफ दिख गया। कार्यकर्ताओं ने स्थानीय नेतृत्व पर पैसा लेकर टिकट बेचने जैसे गंभीर आरोप तक लगाये। इस तरह महापौर और कुछ पार्षद उम्मीदवार सभी को लेकर को लेकर यहां भाजपा की मुश्किले बढ़ती दिखने लगीं।
महापौर उम्मीदवार का बाहरी होने का मुद्दा पार्टी के भीतर ही नहीं आमजन के बीच भी बड़े आक्रोश की वजह नजर आ रहा है।
अनुशासन के नाम पर की गयी कड़ाई ने जैसे तैसे पार्टी के भीतर से उठ रहे विरोध पर तो रोक लगा दी लेकिन कुछ कार्यकर्ताओं को समझाया नहीं जा सका और वह लोग अपने अपने वार्डों से भाजपा उम्मीदवार के खिलाफ निदर्लीय उम्मीदवार के रूप में चुनावी मैदान में उतर आये। काफी समझाने के बाद भी नाम वापस न लेने पर आखिरकार कल 22 बागियों को पार्टी से निष्कासित करने की कार्रवाई की गयी। विरोध को अनुशासन की तलवार से काटने की कोशिश इन 22 बागियों के साथ नाकाफी साबित हुई। अगर आम जन की बात करें तो लोगों के बीच झांसी मेयर पद का
उम्मीदवार झांसी से ही न होना एक बड़े आक्रोश की वजह है।
पार्टी भी इस आक्रोश को जान और समझ रही है इसलिए बुंदेलखंड की इस बेहद महत्वपूर्ण सीट पर पहले ही स्टार प्रचारक के रूप में उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने ताल ठोकी और पार्टी उम्मीदवार के पक्ष में लहर बनाने की जिम्मेदारी संभाली अब मुख्यमंत्री भी चुनावी जनसभा करने आ रहे हैं। इतना ही नहीं कार्यकर्ताओं और पार्टी के स्थानीय नेताओं के साथ साथ विधायक तथा सांसद भी मेयर पद के चुनाव में गली गली और घर घर जाकर लोगों को इस बार फिर भाजपा का साथ देने के लिए मना रहे हैं।
इस बीच व्यापारी वर्ग में पनप रहा विरोध भी पार्टी का बड़ा सिरदर्द है। मूलत: व्यापारियों की पार्टी कहलाने वाली भाजपा को इस बार व्यापारियों को ही अपने उम्मीदवार का साथ निभाने के लिए तैयार करने में काफी पसीना बहाना पड़ रहा है। नगरीय निकाय चुनाव भी पार्टी को लोगों की आधारभूत जरूरतों को लेकर उत्कृष्ट कार्यों के स्थान पर मोदी और योगी के नाम पर लड़ना पड रहा है, यह एक बड़ी विडंबना है।
वार्डों की जनता यूं तो अभी तक महानगर को चमकाने के लिए किये जा रहे कार्यों से खुश है लेकिन मूलत: सूखाग्रस्त इस इलाके में महानगर के भीतर आज भी लोग पीने का स्वच्छ पानी न मिलने जैसी चीजों पर अपना विरोध दर्ज करा रहा हैं । यह भाजपा के लिए इस बार चुनाव में बड़ी परेशानियां है और इसी को देखते और समझते हुए पार्टी ने अपनी पूरी ताकत निकाय चुनाव में झोंक रखी है।
जो इस बात का परिचायक है कि कहीं न कहीं ऊपर के पदों पर बैठे लोगों को भी समझ आ रहा है कि “ बहुत कठिन है डगर पनघट की”
डेस्क
बुंदेलखंड कनेक्शन