झांसी 23 जनवरी । उत्तर प्रदेश में झांसी स्थित महारानी लक्ष्मीबाई मेडिकल कॉलेज के एनेस्थीसिया विभाग के प्रोफेसर और पैरामेडिकल ट्रेनिंग कॉलेज के निदेशक डॉ़ अंशुल जैन ने माता सरोज जैन के निधन के बाद परिजनों की सहमति से मेडिकल कॉलेज को शवदान करने का फैसला किया ,जिसके बाद शव आज महारानी लक्ष्मीबाई मेडिकल कॉलेज पहुंचाया गया।

मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ़ एन एस सेंगर ने बताया कि डॉ़ अंशुल जैन के परिवार के लिए यह एक दु:खद घड़ी है लेकिन इस समय में उनके परिवार ने एक बड़ा क्रांतिकारी फैसला लेते हुए स्व़ सरोज जैन का शव मेडिकल काॅलेज को दान किया है। शव मेडिकल कॉलेज के डिपार्टमेंट ऑफ एनाटॉमी में पहुंच गया है और स्वीकार भी कर लिया गया है। अब इसके एम्बामिंग की प्रक्रिया की जा रही है जिसमें सभी खून की नसों में फार्मेलिन भर दिया जाता है। इस प्रक्रिया के कारण शव सड़ता नहीं है और इसे छात्रों के अध्ययन के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।
डॉ़ सेंगर ने कहा कि यह क्रांतिकारी और बेहद वैज्ञानिक सोच को दर्शाने वाला एक साहसिक फैसला है कि मेडिकल कॉलेज के ही एक डॉक्टर ने अपनी माता का शव यहां के पोस्ट ग्रेजुएशन के छात्रों की पढाई के लिए दान किया है। उन्होंने बताया कि शवदान या मृतक के शरीर के किसी हिस्से के दान के लिए पहले से फार्म भरा जाता है जिसमें सबकुछ परिजनों की सहमति से होता है। इस मामले में स्व़ सरोज जी के पति ने यह फैसला लिया है जिसे बाद में परिजनों ने सहमति दी। इस साहसिक फैसले के लिए मैं पूरे परिवार को धन्यवाद देना चाहता हूं। यह पार्थिव शरीर आगे चिकित्सीय प्रशिक्षण में बहुत काम आने वाला है।

इस दौरान मौजूद रहे पूर्व केंद्रीय मंत्री और वरिष्ठ कांग्रेसी नेता प्रदीप जैन ने कहा “ देहदान बहुत बड़ा दान है और डॉ़ जैन व उनके परिजनों ने बहुत साहसिक और सामाजिक सोच में बदलाव लाने वाला फैसला किया है। हमारी संस्कृति में दधिचि जैसे उदाहरण हैं जिन्होंने लोकहित में देहदान किया और आज भी डॉ़ जैन जैसे लोग हैं जो लोकहित में इस तरह के फैसले लेकर एक उदाहरण प्रस्तुत कर रहे हैं। ऐसे फैसले भारतीय समाज में देह को लेकर सोच में बदलाव लाने वाले है । कोराना जैसी महामारी और अन्य घातक बीमारियों के मानवदेह पर हाेने वाले प्रभाव और इसको लेकर चिकित्सकों के ज्ञान में बढावा लाने के लिए प्रशिक्षण की दरकार होती है । ऐसे साहसिक फैसलों से मिले शवों की मदद से छात्रों को दिये जाने वाले प्रशिक्षण में बड़ी मदद मिलती है। डॉ़ जैन के परिवार को बहुत बहुत साधुवाद।”

एनाटॉमी की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ़ संजुला सिंह ने कहा “डॉ़ जैन के परिवार के इस साहसिक फैसले से समाज में यह संदेश जायेगा कि मानव शरीर को समझने के लिए यदि हमें और रिसर्च करनी है तो हमें शवदान के लिए आगे आना चाहिए । सभी से अपील है कि वह अगर चाहें तो बॉडी डोनेट कर सकते हैं जिससे मेडिकल शिक्षा और प्रशिक्षण के क्षेत्र में उनका इस्तेमाल हो सके। हमारा प्रयास रहेगा कि लोग अपनी इच्छा से बॉडी डोनेट करें।”
वैभव सिंह