इस महान संत ने परमब्रह्म की ओर जाने वाले सत्य मार्ग को भक्ति के माध्यम से प्रकाशित कर समाज को उस ओर जाने का रास्ता दिखाया था ।
झांसी 09 दिसंबर । यूं जो जिस काल के संत कवि के जन्म की बात आज की जा रही है उनके जन्म और जन्मस्थान को लेकर काफी मतभेद हैं लेकिन हम किसी विवाद में न पड़ते हुए आज ही भक्तिकाल के इस महान संत का जन्मदिन मान धर्म की सनातन धारा को आगे प्रवाहित करने में उनके योगदान को याद कर रहेे हैं। जी हां बात हो रही है “ महान संत कवि सूरदास ” की ।
सूरदास यह नाम आते ही सबके दिमाग में एक बात आती है कि आंखे न होने के बावजूद भगवान कृष्ण की भक्ति में लिखे उनके वृतांत को पढ़कर ऐसा लगता है कि आंखों वाले भी ऐसा चित्रण न कर पायें जैसा सूरदास जी ने किया।
माना जाता है सूरदास जी का जन्म आज ही के दिन 1478 में रूनकता नामक गांव में हुआ था जो वर्तमान में दिल्ली और मथुरा के बीच स्थित एक गांव है। सूरदास जी ने परमब्रह्म तक पहुंचने और उसे जानने के क्रम में भक्ति को सर्वोपरि माना था और आजीवन कृष्ण भक्ति के लिए समर्पित रहे।
निर्धन ब्राह्मण परिवार में जन्मे सूरदास जी प्रारंभ से ही कृष्ण भक्ति में डूबे थे और उनकी मुलाकात आगरा के गऊघाट में वल्लभाचार्य जी से हुई जिन्होंने उन्हें पुष्टिमार्ग में दीक्षित किया और कृष्णलीला के गीत गाने को कहा। कविहृदयमना सूरदासजी गुरू के आदेश के बाद तो और भी भावमय होकर कृष्ण लीलाओं का वर्णन करते गेय पदों को की रचना में तल्लीन हो गये।
भक्त शिरोमणि सूरदास जी के लिखे ग्रंथों में से पांच का विशेष महत्व है :
सूरसागर
सूरसारावली
साहित्य लहरी
नल-दमयंती
ब्याहलो
अपने आराध्य के प्रति भक्ति के माध्यम से समर्पित सूरदास जी का मानना था कि भक्ति के माध्यम से ही जीवात्मा का सद्गति मिल सकती है। सूरदास जी सनातन धर्म के सर्वोच्च ग्रंथ “ उपनिषद” के अच्छे ज्ञाता थे और इसी कारण आमजन की कोमल भावनाओं को श्रीकृष्ण के बाल स्वरूप से भक्ति के माध्यम से परिचित करा कर जीवात्मा की सद्गति की बात उन्होंने अपनी रचनाओं में की।
यह बेहद हास्यास्पद है कि जो महान संत परमब्रह्म की ओर ले जाकर मानवजाति के जीवन की सार्थकता को लेकर बातें कह रहा हो, उसके जन्मांध होने या न होने को लेकर भी विवाद लोगों ने खड़ा कर दिया। वह जन्म से अंधे थे या नहीं इसमें उलझकर, परमसत्य की ओर बढ़ने की उनकी सर्वोच्च व गूढ़ सीख को नजरअंदाज करने का प्रयास किया। क्या इस महान व्यक्तित्व के जन्म से अंधे होने या न होने से उस महान कार्य का महत्व कम हो जाता है जो मानवजाति के कल्याण के लिए उन्होंने अपनी भक्ति के माध्यम से किया। ऐसे महान संत किसी धर्म, जाति या समुदाय विशेष के लिए नहीं बल्कि हर मनुष्य और संपूर्ण जगत के कल्याण के लिए काम करते हैं और इसी कारण वह हर मनुष्य के लिए सदा परम उपयोगी रहते हैं।
आज इस महान कवि के जन्मदिवस पर यदि हर सनातनी, जो किसी तथाकथित धर्म विशेष नहीं बल्कि परमब्रह्म की सत्ता के आगे नतमस्तक है ,उसका कर्तव्य है कि उनकी लिखित रचनाओं को अपने घर लाएं , बच्चों को ऐसे महान संत की भक्ति भाव से परिपूर्ण रचनाओं से अवगत कराये और संपूर्ण जगत के कल्याण की जो सनातन भावना हमारे देश से उपजी और इन संतों के माध्यम से आगे पुष्पित और पल्लवित की गयी ,उसके महत्व को अगली पीढ़ी को बताये, ताकि नयी पीढ़ी भी अपनी गौरवशाली परंपराओं को आत्मसात कर गर्व का अनुभव करते हुए विश्वास के साथ समाज और दुनिया में पनप रही समस्याओं के निराकरण के लिए काम कर सके।
आपाधापी की जिंदगी में आज संत कवि सूरदास की जयंती पर उनके जीवन और कार्य की महानता पर अपनी अपूर्ण क्षमताओं से कुछ लिखने का यह एक छोटा सा प्रयास है।
वैभव सिंह
