माँ सिद्धिदात्री

शारदीय नवरात्र का देवी महात्म : नवां दिन -माँ सिद्धिदात्री

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झांसी। नवरात्र का नवां दिन मां सिद्धिदात्री को समर्पित है। नवरात्र के अंतिम दिन माता सिद्धिदात्री की विधि विधान के साथ पूजा अर्चना करने से मां सभी मनोकामनाओं को पूरा करती हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है

सिद्ध गन्धर्व यक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि।
सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी॥

स्वरुप:

नवदुर्गाओं में माँ दुर्गा के नौवें स्वरूप के रूप में सिद्धिदात्री की आराधना की जाती है। माँ का स्वरूप अत्यंत ही तेजस्वी और प्रभावशाली है। वे कमल पुष्प पर विराजमान होती हैं। उनकी चार भुजाएं हैं। दाहिनी ओर का नीचे वाला हाथ चक्र धारण किए हुए है और ऊपर वाला हाथ गदा से सुशोभित है। बायीं ओर का नीचे वाला हाथ शंख लिए है तथा ऊपर वाले हाथ में कमण्डलु सुशोभित है। उनका वाहन सिंह है। नवरात्रि के नवें दिन सिद्धिदात्री माँ की उपासना से भक्त को सभी प्रकार की सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं।

कथा:

सृष्टि के आदि काल की बात है। जब न आकाश था, न पवन, न सूर्य, न चन्द्र, न दिन, न रात्रि। हर ओर केवल अंधकार ही अंधकार व्याप्त था। तभी उस शून्य में एक अद्भुत दिव्य प्रकाश प्रकट हुआ। वही प्रकाश परमशक्ति का स्वरूप था, जिसे महाशक्ति कहा गया। उसी महाशक्ति ने इस विश्व की रचना का संकल्प किया।

माँ सिद्धिदात्री

इसी समय ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने उस अद्वितीय शक्ति की उपासना प्रारम्भ की। वे सभी इस रहस्य को समझ गए थे कि बिना शक्ति के सृजन, पालन और संहार का कार्य संभव नहीं है। वे त्रिदेव कठोर तपस्या में लीन हुए और अनगिनत वर्षों तक परमशक्ति की आराधना करते रहे। उनकी निष्ठा और भक्ति से प्रसन्न होकर देवी उस दिव्य प्रकाश से प्रकट हुईं और सिद्धिदात्री स्वरूप में अवतरित हुईं।

सिद्धिदात्री देवी का अर्थ है: वह जो सिद्धियाँ प्रदान करती हैं। देवी ने प्रकट होकर त्रिदेव को आशीष दिया और कहा, “तुम्हारे तप और भक्ति से मैं प्रसन्न हूँ। मैं तुम्हें वे सभी सिद्धियाँ प्रदान करती हूँ जिनसे तुम इस सृष्टि का संचालन कर सको।” देवी ने उन्हें आठ महान सिद्धियाँ प्रदान कीं- अनिम, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्‍ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशीत्व। यही सिद्धियाँ आगे चलकर त्रिदेव की शक्तियों का आधार बनीं।

माँ सिद्धिदात्री

महादेव ने जब देवी की उपासना की, तो वे भी माँ सिद्धिदात्री से सिद्धियों के वरदान से विभूषित हुए। माँ ने उन्हें आशीष दिया और तभी शिवजी अर्धनारीश्वर रूप में प्रकट हुए, जिसमें उनका एक अंग पुरुष और दूसरा अंग स्त्री स्वरूप का था। इसका गूढ़ अर्थ यही है कि सृष्टि की रचना शक्ति और शिव दोनों के मिलन से ही संभव है। शक्ति के बिना शिव शून्य हैं और शिव के बिना शक्ति का कोई अर्थ नहीं।

मंदिर:

माँ सिद्धिदात्री के कई प्रसिद्ध मंदिर हैं: वाराणसी में गोलघर के पास स्थित मंदिर, मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा में मंदिर और भोपाल के कोलार क्षेत्र में जीजीबाई मंदिर के नाम से प्रसिद्ध स्थान। नवरात्रि के नवें दिन इनकी विशेष रूप से पूजा की जाती है। माँ की उपासना से भक्त के सभी दुःख और क्लेश दूर हो जाते हैं। माँ सिद्धिदात्री की कृपा से भक्त नवीन सुखों का अनुभव करता है और अंततः मोक्ष की प्राप्ति करता है।

अनमोल दुबे,वैभव सिंह

बुंदेलखंड कनेक्शन

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