

डॉ. गुप्ता ने अपनी विद्वता से सम्पूर्ण भारत में ही नही बल्कि विश्व में प्रसिद्धि अर्जित की । उनका जन्म उत्तर प्रदेश के झांसी नगर में 1935 में हुआ था। उन्होंने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा यहीं से पूरी करने के बाद लखनऊ विश्वविद्यालय से 1955 में स्नातक तथा 1957 में परास्नातक की उपाधि प्राप्त की। डॉ गुप्ता ने अपना कैरियर एक गणित के अध्यापक के रूप में प्रारम्भ किया। वह 1963 में दत्ता एण्ड सिन्हा की पुस्तक हिस्ट्री ऑफ हिन्दू मैथेमैटिक्स से बहुत प्रभावित हुए। डॉ. गुप्ता 1957 से 1958 तक लखनऊ क्रिश्चियन कॉलेज में प्रवक्ता रहे।
डॉ.गुप्ता ने अपना सम्पूर्ण जीवन वैदिक गणित के शोधपत्रों के लेखन व उसे नये आयामों तक पहुंचाने में लगा दिया। उन्हें 1991 में राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी में फैलोशिप मिली तथा 1994 में वे भारत के गणित शिक्षक संगठन के अध्यक्ष चुने गये। 2009 में उन्हें गणित के इतिहास पर शोधपूर्ण कार्य करने के लिये अन्तर्राष्ट्रीय आयोग द्वारा भारत में गणित का नोबेल पुरुस्कार माना जाने वाला ‘कैनेथ ओ मे’ पुरुस्कार से नवाजा गया।
आईआईटी बॉम्बे ने 2015 में डॉ. राधाचरण गुप्ता के वैदिक गणित के इतिहास से सम्बन्धित लेखों पर आधारित विश्व प्रसिद्ध पुस्तक ‘गणितानन्द’ (स्प्रिंगर) प्रकाशित की। एनसीईआरटी दिल्ली ने प्रोफेसर गुप्ता की दो पुस्तकें प्राचीन भारतीय गणित व मध्यकालीन भारतीय गणित की ऐतिहासिक व सांस्कृतिक झलकियाँ प्रकाशित की।