नयी दिल्ली 02 जनवरी । भारतीय अंतरिक्ष एवं अनुसंधान संगठन (इसरो) अपनी नित नयी उपलब्धियों के माध्यम से देश को नयी ऊंचाईयो पर पहुंचाने में लगातार प्रयायरत रहता है। इस बार तो नववर्ष के पहले ही दिन इसरो ने देश को वह तोहफा दिया कि जिसके बाद भारत यह कारनामा करने वाला अमेरिका के बाद दुनिया का दूसरा देश बन गया है।
जीं हां बात हो रही है ब्लैक होल नाम की अंतरिक्ष की उस अबूझ पहेली की जिसकी गुत्थी को सुलझाने का प्रयास भारत से पहले केवल दुनिया का एक ही देश अमेरिका कर सका है और अब भारत ने इस ओर कदम बढा दिया है ।
इसरो ने नये साल के पहले ही दिन “ एक्सर-रे पोलेरिमीटर (एक्सपोसैट) ” नामक उपग्रह का सफल परीक्षण आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थिति प्रक्षेपण स्थल से प्रक्षेपण यान ( रॉकेट) पीएसएलवी-सी 58 की मदद से किया। यह रॉकेट एक्सपोसैट को पृथ्वी की निचली कक्षा (650) किलोमीटर पर स्थापित करेगा। यह उपग्रह एक स्पेशलाइज़्ड एस्ट्रोनॉमी ऑब्ज़र्वेट्री है जो अपनी कक्षा से “ ब्लैक होल और न्यूट्रॉन स्टार्स ” के बारे में जानकारी एकत्र करेगा।
इस रॉकेट के साथ कुल 10 पेलोड अंतरिक्ष में भेजे गये। यह मिशन भारत के लिए बेहद गौरव का क्षण है क्योंकि इससे पहले केवल अमेरिका ने 2021 में नासा ने इमेजिंग एक्स-रे पोलेरिमिट्री एक्सप्लोरर मिशन भेजा है। अमेरिका के बाद भारत ने दुनिया में दूसरा पोलेरिमीटर मिशन भेजा है।
क्या है ब्लैकहोल और न्यूट्रॉन स्टार्स
माना जाता है कि यह अंतरिक्ष का वह क्षेत्र है जहां गुरूत्वाकर्षण बल इतना अधिक होता है कि प्रकाश (लाइट) भी इससे बाहर नहीं आ पाता है।अंतरिक्ष में जब कोई तारा मरता है अर्थात तारे को चमकाने वाला ईंधन हाइड्रोजन के मिलने से बना हीलियम जब खत्म हो जाता है तो तारे का बचा हुआ द्रव्यमान आपस में ही आकर्षित होता है और इस तरह कोई भी मृत तारा अपने वजन के कारण अंदर की ओर सिकुड़ जाता है । इससे ही ब्लैक होल बनने लगते हैं। इस तरह से एक मृत तारे में ऐसा वैक्यूम बन जाता है कि वह चीजों को अपनी ओर खींच लेता है औा एक मृत तारा आसपास के मरे तारों को अपनी ओर खींचने लगता है।
किसी विशाल तारे के मरने से पहले जबरदस्त रूप से चमकने (सुपरनोवा) स्थिति में पहुंचने और तारे में विस्फोट के बाद जो कोर बचा रह जाता है उसे “ न्यूट्रॉन स्टार” कहा जाता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि इसका क्षेत्र कुछ 15 से 30 किलोमीटर चौड़ा होता है और वजन सूर्य से तीन गुना अधिक भी हो सकता है।यह न्यूट्रॉन स्टार ब्रह्माण्ड में सबसे घनी वस्तुओं में से एक है।
एक्सपोसैट क्या है
एक्सपोसैट में ब्लैकहोल और न्यूट्रॉन स्टार्स का अध्ययन करने के लिए दो पेलोड पोलिक्स और एक्सपेक्ट लगाये गये हैं। जब अंतरिक्ष में कोई तारा मरेगा और उसकी एनर्जी, वेव के रूप में बाहर निकलेगी, जिसे “ एक्स-रेज़” कहा जाता है । इसरो के यह दोनों पेलोड इसी एक्स -रेज़ का अध्ययन करेंगे और यह जानने का प्रयास किया जायेगा कि वह तारा विशेष ब्लैक होल के पास जाने से मरा था या फिर पहले से मरा हुआ था। तारे के मरने पर निकलने वाली इलेक्ट्रोमेगनेटिक वेव्स यदि किसी अन्य गुरूत्वाकर्षण बल के संपर्क में आती हैं तो उनके मार्ग में भटकाव आ जाता है ।ये पेलोड वेव्स के मार्ग में आने वाले इसी भटकाव का अध्ययन करेंगे।
नासा के ब्लैक होल को समझने के लिए आब्जर्वेट्री 2021 में भेजे जाने के बाद मात्र दो साल बाद ही इसरो ने यह कारनामा कर दिखाया है । यह इसरो की शानदार उपलब्धि है जिसने भारत को अंतरिक्ष के क्षेत्र में न केवल नयी ऊचांईयों पर पहुंचाया है बल्कि दुनिया में भारत के कद को और ऊंचा किया है । एक तरह से विश्वगुरू बनने के भारत के सपने को इसरो की इस नयी कामयाबी ने और बल दिया है।
टीम, वैभव सिंह
बुंदेलखंड कनेक्शन